साल 11 सितंबर 1893 बात है शिकागो में एक छोटा सा युवा साधारण धोती पहनकर बड़े -बड़े पढ़े लिखे लोगों के बीच में एक बड़े सम्मेलन में गया, सम्मेलन में कई लोगों को भाषण देना था, कई लोग भाषण देने गए लेकिन जब इस साधारण से धोती पहने युवा की बारी आई तो इसने भी अपना भाषण दिया, शुरूआत ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ से की गई और इतने में ही पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा था। जिसेके बाद पूरे भाषण में ऐसी बातें थी जिसे आज भी याद किया जाता है तो हर भारतीय को गर्व होता है। ये भाषण देने वाला युवा और कोई नहीं बल्कि भारत के संत स्वामी विवेकानंद थे। स्वामी विवेकानंद जिन्हे युवा अपना प्रेरणास्त्रोत मानते हैं। जिनके विचारों को लोग अपने जीवन में आत्मसार करते हैं। तो आइये स्वामी विवेकानंद की पुष्यतिथि पर उनके कुछ अनमोल विचार आपको बताते हैं।
विनम्रता एक अनमोल गुण है
स्वामी विवेकानंद कहते थे कि जब हम लोगों की किसी भी गलत काम को ठीक करने जाते हैं, तो ऐसे कई मौक़े आते हैं जब लोग अपनी बात को मनवाने को लेकर हमारा विरोध करते हैं। ऐसे समय में, विनम्रता से किसी भी जटिल परिस्थिति को हल्का किया जा सकता है और प्रेम के धागे को टूटने से बचाया जा सकता है।
जीवन में जिज्ञासा जरूरी है
जीवन के प्रति हमारी जिज्ञासा को लेकर अच्छे और समग्र ढंग से प्रयास करते रहना चाहिए। जीवन के उच्च सत्य के प्रति जिज्ञासा ने बहुत से लोगों का जीवन परिवर्तित किया है। याद रखिए, जो दिखता है वो है नहीं।
दयालुता और कृपालुता सदैव ही रहने वाले हैं
कभी कभार हम अपने प्रियजनों या अपने मित्रों के लिए कुछ काम प्रेम या दयालुभाव से करतें हैं। हम उनके अच्छे गुणों की प्रशंसा करके मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित करते हैं, इस प्रकार हम उन्हें समाज में अच्छा काम करने के लिए सक्षम बनाते हैं। दया और करुणा हमारे स्वाभाव का अंग है।
अपनी संस्कृति और उसके सिद्धांतो का आदर हो
एक बार अंग्रेजों ने भारतीय परिधान पर व्यंग्य करते हुए कहा था की आपके परिधान बहुत “असभ्य” हैं। इस पर स्वामी विवेकानंद जी ने कहा, “आपकी संस्कृति में, कपड़ों से आदमी की पहचान होती है लेकिन हमारी संस्कृति में, कपड़ों से नहीं चरित्र से व्यक्ति की पहचान होती है”
हमें अपनी संस्कृति, उसके सिद्धांत और उसकी परंपरा का सदैव सम्मान करना चाहिए। संस्कृति एवं सिद्धांत ही हर समुदाय को विशिष्ठ बनाती हैं। हमारे जीवन में उनका महत्त्व और उसे लेकर हमारा तर्क दूसरों के संदेहों, धारणाओं और विचारों को स्पष्ट करने में मदद करता है।
स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ था
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ आर माता का नाम भुवनेश्वरी थी। स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, जिन्हें लोग नरेन के नाम से भी बुलाते थे। राजस्थान के खेतड़ा के महाराजा अजीत सिंह ने उन्हें ‘विवेकानंद’ नाम दिया था। स्वामी विवेकानंद ने 25 साल की आयु में गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया था और पैदल ही पूरे भारत की यात्रा पर निकल गए। इसके बाद 31 मई, 1893 को विवेकानंद मुम्बई से विदेश यात्रा पर निकले और सबसे पहले जापान पहुंचे। जापान में स्वामी विवेकानंद ने नागासाकी, ओसाका और योकोहामा समेत कई कई जगह का दौरा किया। 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए।