प्रदेश में मानसून सत्र की तिथि घोषित होने के साथ ही सत्र की अवधि को लेकर घमासान मच गया है। मानसून सत्र की अवधि को लेकर विपक्ष सवाल खड़े कर रहा है। इसको लेकर विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सरकार सत्र की अवधि को घटाकर सवालों से बचना चाहती है।
सत्र की अवधि को घटकर जनता के मुद्दों से बचना चाहती है सरकार
प्रदेश में जब भी विधानसभा का सत्र आहूत हुआ तो सत्र की अवधि को लेकर विपक्ष लगातार सत्ता पक्ष पर हमलावर रहा। इस बार तीन दिवसीय मानसून सत्र प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में आयोजित हो रहा है। विपक्षी दल सरकार पर आरोप लगा रहा है कि सरकार सत्र की अवधि को घटकर जनता के मुद्दों से बचना चाहती है। उप नेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा की तीन दिनों में राज्य के ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा होना और विपक्ष द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होना संभव नहीं है।
पांच साल में 60 दिन नहीं चल पाया सत्र
भुवन कापड़ी का कहना है कि सरकार जनता के प्रति जवाब देह से बचने का काम कर रहीं है। मानसून सत्र को तीन दिवस तक चलना है जब विधानसभा नियमावली में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ कि सरकार को एक वर्ष में 60 दिनों तक सत्र चलाना चाहिए। जिससे महत्वपूर्ण विषयों में चर्चा हो सके और जनहित के मुद्दों पर चर्चा हो।
उनका कहना है कि सरकार के ये हाल है वो पांच वर्ष में भी 60 दिन सत्र आहूत नहीं कर पा रही है। जिससे सरकार की मंशा पर प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है। सरकार बजट सत्र को भी तीन दिनों में ही समाप्त कर देती है। जबकि बजट सत्र अन्य राज्यों की तर्ज़ पर कम से कम तीन सप्ताह चलाना चाहिए क्योंकि बजट विभागवार पेश किया जाता है।
बिजनेस के हिसाब से तय होती है सत्र की अवधि
विपक्ष के आरोपों पर संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि हम जो भी सत्र करते हैं वो हम बिजनेस के हिसाब से करते हैं। सरकार के पास जो बिजनेस है उसी के हिसाब से सत्र की अवधि तय होती है। प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि जहां तक बात विपक्ष की है तो विपक्ष के जो मुद्दे हैं वो उन मुद्दों को उठाए। हम विपक्ष के सभी मुद्दों का जवाब देने के लिए तैयार हैं। लेकिन विपक्ष से एक विनती है कि वो हल्ला और बेकार की बातों पर समय व्यर्थ ना करें।