दून पुस्तकाल एवं शोध केंद्र ने हिमालयी क्षेत्र में लगने वाली जंगलों की आग की समस्या को लेकर एक महत्वपूर्ण राउंड टेबल डायलॉग का आयोजन किया। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति के बावजूद, ये आग, जो फरवरी से जून तक अधिक होती है, हिमालय को तबाह करती रहती है, जिससे वनस्पति, जैव विविधता और वन संरचना प्रभावित होती है। इस बहु-विषयक कार्यक्रम का उद्देश्य अग्नि शमन रणनीतियों का विकास करना और उत्तराखंड में बेहतर अग्नि प्रबंधन के लिए सहयोगात्मक प्रयासों को बढ़ावा देना था।
आग के शमन के लिए समाधान खोजने की आवश्यकता
दून पुस्तकाल एवं शोध केंद्र के अध्यक्ष प्रो. बी.के. जोशी ने इस चर्चा की शुरुआत करते हुए क्षेत्र में आग के शमन के लिए समाधान खोजने की आवश्यकता पर जोर दिया। प्रसिद्ध पारिस्थितिकीविद् और सिडार के संस्थापक अध्यक्ष प्रो.एस.पी. सिंह ने जंगल की आग के बाद के प्रभावों पर व्यापक अनुसंधान की आवश्यकता पर बल दिया। जिसमें मानव-आग इंटरैक्शन, बदलते आग के पैटर्न और पौधों के अनुकूलन लक्षणों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
उत्तराखंड में मजबूत अग्नि प्रबंधन योजना विकसित करने की जरूरत
भूतपूर्व प्रमुख वन संरक्षक डॉ. राजीव भर्तरी ने समुदाय के साथ निरंतर संवाद की आवश्यकता पर जोर देते हुए एक मजबूत अग्नि प्रबंधन योजना विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने अमेरिका और कनाडा में अपने अनुभवों को साझा करते हुए विभिन्न विशेषज्ञों के इनपुट के लिए केंद्रित कार्यशालाओं की आवश्यकता पर जोर दिया।
वन विभाग से सेवानिवृत्त ए.आर.सिन्हा ने वन रक्षकों और समुदाय के अग्निशमन कर्मियों को गुणवत्ता वाले सुरक्षा उपकरण प्रदान करने और अग्निशमन प्रयासों के लिए समय पर धनराशि जारी करने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि बायोमास संचय से आग की गंभीरता बढ़ जाती है, जिससे मृदा सघनता और भूजल पुनर्भरण प्रभावित होता है।
वन-पंचायतों जैसी संस्थाओं को दिया जाए प्रोत्साहन
एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल ने 2022 में सिडार द्वारा आयोजित कार्यशाला की सिफारिशों को लागू करने की वकालत की और बेहतर निर्णय लेने के लिए वनाग्नि के प्रभावों के बारे में राजनीतिक नेताओं को सूचित करने की आवश्यकता पर बल दिया डब्ल्यू एफ एफ इंडिया के पंकज जोशी और यूसेक के डॉ. गजेंद्र रावत ने अग्नि प्रबंधन की दक्षता बढ़ाने और अग्नि हॉटस्पॉट का पता लगाने में रिमोट सेंसिंग तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया।
उन्होंने वन-पंचायतों जैसी संस्थाओं को प्रोत्साहन देने की सिफारिश की ताकि आग से सुरक्षा में मदद मिल सके। बीज बचाओ आंदोलन के बीजू नेगी ने भूमिगत पारिस्थितिक तंत्र पर जंगल की आग के गंभीर प्रभाव को उजागर किया और व्यापक अग्नि प्रबंधन और पारिस्थितिक पुनर्स्थापन रणनीतियों की आवश्यकता पर बल दिया।