Uttarakhand : उत्तराखंड के पहाड़ों पर हुआ था भगवान गणेश का जन्म, इस मंदिर में विराजते हैं बप्पा - Khabar Uttarakhand - Latest Uttarakhand News In Hindi, उत्तराखंड समाचार

उत्तराखंड के पहाड़ों पर हुआ था भगवान गणेश का जन्म, इस मंदिर में विराजते हैं बप्पा

Sakshi Chhamalwan
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गणेश चतुर्थी का उत्सव आज से 10 दिन के लिए शुरू हो गया है। कहा जाता है भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन माता पार्वती के पुत्र गणपति का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी के मौके पर आपको बताते हैं कि भगवान गणेश का जन्म कैसे और कहा हुआ था।

अनंत चतुर्दशी तक पृथ्वी पर वास करते हैं बप्पा

कहा जाता है गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक गौरी पुत्र गणेश पृथ्वी पर वास करते हैं। जो लोग अपने घर में गणपति की स्थापना करते हैं बप्पा उनके सारे संकट, दुख, दरिद्रता हर लेते हैं। गणेश जी के आशीर्वाद से घर में सुख-समृद्धि आती है। इसके साथ ही जातक के बिगड़े काम बनने लगते हैं।

कहां हुआ था गणेश जी का जन्म

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के डोडीताल को गणेश जी का जन्म स्थान माना जाता है। यहां पर माता अन्नपूर्णा का प्राचीन मंदिर है। जहां गणेश जी अपनी माता के साथ विराजमान हैं। आपको बता दें डोडीताल मूल रूप से बुग्‍याल के बीच में काफी लंबी-चौड़ी झील है। वहीं गणेश का जन्‍म हुआ था।

कहा जाता है कि केलसू जो मूल रूप से एक पट्टी है। यह जगह असी गंगा केलसू क्षेत्र में है। केलसू क्षेत्र असी गंगा नदी घाटी के सात गांवों को मिलाकर बना है। मान्यता अनुसार डोडीताल क्षेत्र मध्‍य कैलाश में आता था और डोडीताल माता पार्वती और शिवजी का स्‍नान स्‍थल था।

कैलाश पर्वत वैसे तो यहां से सैंकड़ों मील दूर है। लेकिन स्थानीय लोग मानते हैं कि एक समय यहां माता पार्वती विहार करने आई थीं तभी गणेश जी का जन्म हुआ था।

भगवान गणेश को स्‍थानीय बोली में डोडी राजा कहा जाता हैं। जो केदारखंड में गणेश के लिए प्रचलित नाम डुंडीसर का अपभ्रंश है। यहां पर हर साल बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक और श्रद्धालु पहुंचते हैं।

कैसे हुआ था गणेश जी का जन्म

कहा जाता है कि इसी स्थान पर माता अन्नपूर्णा ने हल्दी के उबटन से गणेश भगवान की उत्पति की थी। इसके बाद वह स्नान के लिए चली गईं और बाहर गणेश को द्वारपाल के रूप में तैनात कर दिया। जब शिव जी वहां आए तो गणेश ने उनको द्वार पर ही रोक दिया। जिस बात को लेकर दोनों के बीच युद्ध हुआ। युद्ध में भगवान शिव ने त्रिशूल से गणेश जी का मस्तक धड़ से अलग कर दिया।

जब भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने गरुड़ को अपने बच्चे की तरफ पीठ कर सो रही माता के बच्चे के सिर को लाने के आदेश दिए। भगवान शिव के आदेश के बाद गरुड़ भगवान ऐसे ही किसी बच्चे की तलाश में चले गए। गरुड़ भगवान गज शिशु का शीश ले आए। शिव ने भगवान गणेश को गज शीश लगाकर पुनर्जीवित कर दिया।

बता दें स्‍वामी चिद्मयानंद के गुरु रहे स्‍वामी तपोवन ने मुद्गल ऋषि की लिखी मुद्गल पुराण के हवाले से अपनी किताब हिमगिरी विहार में भी डोडीताल को गणेश का जन्‍मस्‍थल होने की बात लिखी हुई है।

कैसे पहुंचे डोडीताल

डोडीताल पहुंचने के लिए पहले आपको उत्तरकाशी आना होगा। देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार से उत्तरकाशी के लिए बस और टैक्‍सी आसानी से मिल जाती हैं। यहां से 18 किलोमीटर अगोड़ा गांव तक सड़क मार्ग है।

अगोड़ा से बेवरा, छोटी व बड़ी उड़कोटी, मांझी होते हुए ट्रैकिंग कर डोडीताल पहुंच सकते हैं। देहरादून के सहस्रधारा हेलीपैड से चिन्यालीसौड़ तक हेलीकाप्टर सेवा भी उपलब्ध है। अगर आप अप्रैल से अक्टूबर महीने के बीच आते हैं तो ट्रैक पर आपको मनमोहक दृश्य देखने को मिलेगा।

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं मान्यताओं पर आधारित हैं। khabaruttarakhand.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Sakshi Chhamalwan उत्तराखंड में डिजिटल मीडिया से जुड़ीं युवा पत्रकार हैं। साक्षी टीवी मीडिया का भी अनुभव रखती हैं। मौजूदा वक्त में साक्षी खबरउत्तराखंड.कॉम के साथ जुड़ी हैं। साक्षी उत्तराखंड की राजनीतिक हलचल के साथ साथ, देश, दुनिया, और धर्म जैसी बीट पर काम करती हैं।