हल्द्वानी, संवाददाता- महान वैज्ञानिक अलर्बट आइंस्टाइन ने सालो पहले कहा था कि दुनिया में यदि मधुमक्खियां खत्म हो जायेगी तो उसके चार साल बाद धरती में जीवन समाप्त हो जायेगा। मगर अफसोस की विनाश और विकास की महीन रेखा के अंतर को न समझ सकने वाली दुनिया भर की हुकूमतें बेफिक्र हैं। मधुमक्खियां खात्मे की ओर बढ़ रही हैं और सरकारें कैशलेस और खेती-किसानी के लिए रसायनिक खाद के बढावे के लिए पूंजीपतियों के कारोबार में इजाफे की मुहिम छेड़े हुए है।
कैशलेस होने के लिए जहां सरकारों को मोबाइल टॉवर की दरकार है तो वहीं कृषि उपज बढाने के लिए सरकारों का ध्यान रसायनिक उत्पादनों पर है । आलम ये है कि अब तक जितने मोबाइल टॉवर और कृषि संबन्धित रासायनिक उत्पादन हैं उनसे सरकार का मकसद पूरा नहीं हो पा रहा है। तय है कि अपनी और खास उद्योगपतियों की मंशा पूरी करने के लिए सरकार मोबाइल टावर्स और कृषि रसायनो के उत्पादन की तादाद में भी इजाफा करेगी।
इससे उन बेगुनाह मासूम मधुमखियों की नस्ल का नाश होने में बढोत्तरी होने लगेगी। जबकि मधुमक्खियां मानव जीवन के लिए पानी जैसी जरूरी हैं। ये परागण की प्रक्रिया को तेज कर कृषि उपज को न केवल उन्नत नस्ल की बनाती हैं बल्कि उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी करती हैं। इतना ही नहीं जंगलों के विकास में भी इनका परागण निर्भर रहता है ।
![मधुमक्खियां खत्म हुई तो चार साल बाद धरती से जीवन भी खत्म, जानिए क्यों dr parag bee specilisht](http://khabaruttarakhand.com/wp-content/uploads/2017/02/dr-parag-bee-specilisht-300x225.png)
वन उपज एवं कीट विशेषज्ञों डॉ पराग मुधकर धकाते (IFS) और निशांत वर्मा (IFS) जैसे विशेषज्ञों की माने तो मधुमखियों की तादाद न केवल शहरों कस्बों और गांवों में कम हो रही है बल्कि जंगलो में भी अब मधुमक्खियों के छत्ते नजर नही आ रहे हैं।
दोनों जानकार कहते हैं मोबाइल टॉवर्स का रेडिशियन और खेती-किसानी मे इस्तमाल होने वाला रसायन मधुमक्खियों की आबादी के लिए काल साबित हो रहा है। तय है कि अगर ऐसा ही होता रहा तो गौरया के बाद मधुमक्खियां लुप्त श्रेणी का कीट-पतंगा हो जाएगा और संभव है कि उसके चार साल बाद महान वैज्ञानिक अलबर्ट आंइस्टीन की सोच सच साबित हो जाए।