उत्तराखंड में चमोली जिले से खुशखबरी सामने आई है । इस खुशखबरी को सुनने के बाद गांव वालों में अब एक अलग प्रकार की खुशी की लहर देखने को मिल रही है । चमोली जिले में जड़ी-बूटी की खेती कर रहे 48 काश्तकारों को केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने पंजीकृत कर लिया है। अब ये 48 काश्तकार अपनी जड़ी बूटी देश के किसी भी कोने में बेच सकेंगे। चमोली के देवाल ब्लाक में भी कई प्रकार की जड़ी बूटी लगाई जाती है जिसमें से कुटकी एक प्रमुख जड़ी बूटी है घेष और वाण गांव में 10 हेक्टेयर जमीन पर कुटकी उगाई जाती है । आज इसकी बाजार में खरीद भी काफी मात्रा में हो रही है।
कुटकी जड़ी बूटी क्या है
हिमालय के पहाड़ो में पाया जाने वाला कुटकी एक पौधा है जिसे आयुर्वेदिक चिकित्सक उपचार के जड़ और तने के रूप में इस्तेमाल करते हैं । स्वाद में कुटकी कड़वा और तीखा होता है। इसे कटुम्भरा के नाम से भी जाना जाता है । प्राचीन काल से ही कुटकी का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जा रहा है। कुटकी जड़ी बूटी को पाचन, पित्त और कफ की परेशानी को ठीक करने, भूख बढ़ाने के लिए जाना जाता है । यह बुखार, टॉयफॉयड, टीबी, बवासीर, दर्द, डायबिटीज आदि में भी फायदा देती है । इसके साथ ही सांस की बीमारी, सूखी खाँसी, खून की अशुद्धता, शरीर की जलन, पेट के कीड़े, मोटापा, जुकाम आदि रोगों में भी कुटकी मदद करती है। हर तीन साल में तैयार होने वाली कुटकी की कीमत 1200 रुपये प्रति किलोग्राम है।
औषधीय पौधों की खेती से ग्रामीण कमा रहे लाखों
ऐसे में उत्तराखंड में भी कुटकी जड़ी बूटी की खेती अब काफी की जा रही है । खासकर चमोली जिले के देवाल ब्लॉक का घेस गांव के लोग तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। परंपरागत खेती करने वाले गांव वालों ने अब अपना पूरा ध्यान औषधीय पौधों की खेती पर लगा लिया है। जिसमें कुटकी एक मुख्य पौधा है । कुटकी की खेती से गांव के लगभग 70 परिवार की लाखों की आमदनी हो रही है।
जड़ी-बूटी की खेती से जोड़ने के लिए बनेगी डॉक्यूमेंट्री
वहीं अब 48 काश्तकारों को केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने पंजीकृत कर लिया है जिससे उन्हें तरक्की की राह और आमदनी में और अधिक मुनाफा जरूर होगा । उधर मंत्रालय भी अब कुटकी की खेती, काश्तकारों की समस्याओं, अधिक से अधिक काश्तकारों को जड़ी-बूटी की खेती से जोड़ने के लिए डॉक्यूमेंट्री बना रहा है। ऐसे में गांव वाले जो रोजगार की समस्या से ग्रसित हैं या काफी जमीन होने के बाद भी सही खेती और मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं वे ओषधीय जड़ी बूटी की खेती में अपना हाथ आजमा सकते हैं ।