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गैरसैंण न सिर्फ उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी है बल्कि जनभावनाओं का केंद्र भी है। त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा दिया गया था। तब से लेकर अब तक 4 बार ही सत्र हुआ है। इस दौरान सिर्फ 20 दिन ही विस में काम हो पाया था। लेकिन इन बीस दिनों में ही करोड़ों रूपये खर्च हो गए।
5 सालों में सिर्फ चार बार सत्र, लेकिन खर्च हो गए करोड़ों
प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण एक बार फिर चर्चाओं में है। एक RTI में खुलासा हुआ है कि अब तक गैरसैंण में हुए 4 सत्रों में करोड़ों रुपए खर्च हो गए। हैरानी की बात तो ये है कि इन 4 सत्रों में गैरसैंण में केवल 20 दिन ही काम हुआ। इन 20 दिनों में अकेले विधानसभा ने सात करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च की है। जिसमें कि अन्य सरकारी महकमों और सीएम दफ्तर का खर्च शामिल नहीं है।
सूचना अधिकार के तहत ली गई जानकारी से हुआ बड़ा खुलासा
सूचना के अधिकार से ली गई जानकारी से बड़ा खुलासा हुआ है। इस जानकारी में खुलासा हुआ है कि गैरसैंण में हुए सत्र काफी महंगे होते हैं। मिली जानकारी के मुताबिक चौथी निर्वाचित विस (2017-2002) के दौरान ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में चार बार सत्रों का आयोजन किया गया। इन सत्रों में सिर्फ 20 दिन ही काम हुआ। लेकिन इस दौरान विस सचिवालय ने गैरसैंण में सात करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च कर दी।
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पहले और दूसरे सत्र में इतना हुआ खर्चा
ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में पहला सत्र 2017 में सात और आठ दिसंबर को हुआ था। इसकी तैयारियों में सभा मंडप, स्पीकर, डिप्टी स्पीकर, नेता प्रतिपक्ष और मंत्रियों के अस्थायी कार्यालयों पर 18.11 लाख, संचार व्यवस्था पर 10.12 लाख, विधायक आवास की साज-सज्जा पर 30.34 लाख, ट्रांसपोर्टेशन पर 43 हजार, प्रतीक चिह्नों पर 23 हजार खर्च किए गए। जबकि इसके अलावा कार्य करने के लिए चमोली जिला प्रशासन को काम करने के लिए 30 लाख रुपये दिए गए। इसके साथ ही विधायकों को यात्रा भत्ते के लिए 2.60 लाख रुपए दिए गए।
दूसरे सत्र का आयोजन 20 से 26 मार्च 2018 में किया गया। इस सत्र की तैयारियों में नेता प्रतिपक्ष और मंत्रियों के अस्थायी कार्यालयों, सभा मंडप, स्पीकर, डिप्टी स्पीकर पर 19,20 लाख, ट्रांसपोर्टेशन पर 46 हजार, विधायक आवास के रख-रखाव पर 1.40 लाख, मंत्रियों, विधायकों, अधिकारियों-कर्मियों के आहार, कैंटीन संचालन और अध्यासन पर 75.52 लाख रुपये खर्च किए गए। जबिक चमोली जिला प्रशासन को 50 लाख रूपये और विधायकों को यात्रा भत्ता 10.33 लाख रूपये दिए गए।
तीसरे और चौथे सत्र में इतना हुआ कुल खर्चा
तीसरे सत्र का आयोजन तीन से सात मार्च 2019 तक हुआ। जिसमें कि विधायकों, अधिकारियों-कर्मियों के आहार, कैंटीन संचालन और अध्यासन पर 80.61 लाख रुपये खर्च किए गए। कार्पेट, पार्टीशन, कुर्सी और मेज की अस्थायी व्यवस्था पर 22.60 लाख रुपये खर्च किए गए। जबकि चमोली जिला प्रशासन को 40 लाख रूपये दिए गए। विधायकों को यात्रा भत्ता 7.80 लाख रूपये दिया गया।
चौथे सत्र का आयोजन एक से छह मार्च तक चला। जिसमें 93.40 की भारी-भरकम रकम सिर्फ साज-सज्जा पर ही खर्च की गई। इतना ही नहीं, लेखन सामग्री, सेनेटरी आइटम और क्राकरी पर 27 लाख खर्च किए गए। इस दौरान मंत्रियों, विधायकों, अधिकारियों-कर्मियों के आहार, कैंटीन संचालन और अध्यासन पर 80.61 लाख रुपये खर्च किए गए। कार्पेट, पार्टीशन, कुर्सी और मेज की अस्थायी व्यवस्था पर 40.20 लाख रुपये खर्च किए गए। जबकि भराणीसैंण विस भवन के रख-रखाव पर 20.50 लाख खर्च किए गए। 8.35 लाख विधायकों को यात्रा भत्ता के रूप में दिए गए। और चमोली जिला प्रशासन को 40 लाख रुपये दिए गए।
सबसे जरूरी बात ये है कि चार सत्रों के दौरान यहां केवल 20 दिन ही काम हुआ लेकिन सात करोड़ से ज्यादा की राशि केवल विधानसभा ने खर्च की है। जिसमें की सीएम आवास और अन्य सरकारी महकमों की ओर से खर्च की गई राशि शामिल नहीं है। अगर ये राशि भी इसमें शामिल होती है तो ये राशि और भी ज्यादा होती। यहां पर सवाल उठता है कि क्या ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में इतना महंगा क्यों है।