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रैणी आपदा को दो साल पूरे हो गए हैं। दो साल पहले चमोली के रैणी गांव में सैलाब ने मौत का तांडव मचाया था। इस सैलाब के सामने जो आया सैलाब उसे अपने साथ बहा कर ले गया था। इस आपदा में 206 जिंदगियां मलबे में दफन हो गई थी। उस भयानक मंजर को जिसने भी देखा वो आज तक उसको भूल नहीं पाया।
रैणी आपदा के दो साल बाद कैसे हैं हालात
रैणी आपदा को दो साल हो गए हैं। 7 फरवरी 2021 में चमोली के रैणी गांव में सैलाब ने मौत का तांडव मचाया था। इस सैलाब को सामने इंसान, मकान, जंगल जो भी आया था वो उसे बहा ले गया। इस आपदा में 206 लोगों ने अपनी जान गवांई थी। आपदा के बाद सरकार नींद से जागी। आपदा के कारणों का पता लगाया जाने लगा। लेकिन इस आपदा के बाद जो चीजें निकलकर सामने आई वो चौंकाने वाली थी।
आपदा के कारणों को खंगाला जाने लगा तो सामने आया कि वैज्ञानिकों ने ऐसी किसी घटना के होने की चेतावनी पहले ही दे दी थी। लेकिन उस समय सरकार नहीं चेती। चमोली के जिस क्षेत्र में आपदा आई थी वहां के ग्लेशियर पिछले 37 सालों में 26 वर्ग किलोमीटर पीछे खिसके हैं। लेकिन इस बात पर सरकार ने कभी गंभीर कदम नहीं उठाए जिसका परिणाम हमने देखा। 2013 में आई आपदा के बाद भी सरकार ऐसी आपदाओं को उतनी गंभीर नहीं हुई जितना होना चाहिए था।
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वैज्ञानिकों ने बता दिया था कि चमोली में ग्लेशियर पिछले 37 सालों में 26 वर्ग किलोमीटर पीछे खिसक रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद भी किस ग्लेशियर में कब एवलांच आएगी, कहां ग्लेशियर झील फटेगी, इसका पता लगाने की कोशिश नहीं की गई।
रैणी आपदा से कितना सबक ले पाई सरकार?
रैणी आपदा इतनी भयंकर थी कि आपदा के एक साल बाद भी शवों के मिलने का सिलसिला जारी था। इस आपदा ने ऋषि गंगा नदी पर बना ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया था। अब रैणी से भी ज्यादा डरा देने वाले हालात जोशीमठ से सामने आ रहे हैं।
जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव ने सभी को डरा कर रख दिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जोशीमठ के लिए दशकों पहले ह सरकार को चेतावनी दे दी गई थी। कि जोशीमठ में कोई भी बड़ा निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। लेकिन इसके बादजूद भी सरकार ने इन चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया।
रैणी आपदा के बाद भी चमोली के खतरे को नहीं भांपा गया। क्योंकि रैणी से लेकर जोशीमठ एक ही भूखंड पर ही हैं। स्थानीय लोगों का रहना है कि 2021 में दरारों का बढ़ना शुरू हुआ और रैणी आपदा भी 2021 में ही आई थी। यानी रैणी आपदा का असर जोशीमठ पर भी पड़ा। लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि सरकार ने समय कहते इस खतरे का पता क्यों नहीं लगाया।
कैसे बचेंगे पहाड़?
केदारनाथ आपदा हो या रैणी आपदा इन दोनों को भविष्य के लिए चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए था। और पहाड़ों को ऐसी आपदाओं से बचाया जाना चाहिए था। पर सरकार इनसे कोई सबक नहीं ले पाई है। और अब हमारे सामने जोशीमठ के ये हालात खड़े हैं। जहां पर बिल्कुल वहीं दर्द है जो कि केदारनाथ आपदा या रैणी की आपदा के समय था।
साल 2009 के दिसंबर में सुरंग खोदने वाली मशीन ने एक भूगर्भीय जल स्रोत में छेद कर दिया था जिसकी वजह से प्रतिदिन 7 करोड़ लीटर पानी बहता रहा जब तक उसे रोका नहीं गया। साल 2021 की फरवरी में बाढ़ आने से हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की दो में से एक सुरंग बंद हो गयी थी। और जोशीमठ की आपदा के लिए इसे भी जिम्मेदार बताया जा रहा है।
जोशीमठ के हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। एक तरफ जहां सरकार दावा कर रही है कि जोशीमठ में दरारें आने का सिलसिला थम गया है लेकिन वहीं आज खबरें सामने आ रहीं हैं कि फिर से जोशीमठ में दरारें बढ़ रही हैं और 5 नए मकानों में दरारें भी आ गई हैं।
इन सबके बीच एक ही सवाल उठता है कि क्या सरकार अब जोशीमठ और उत्तराखंड के पहाड़ो में बन रहे कई और जोशीमठ जैसे हालातों को बचा पायेगी। क्या सरकार केदारनाथ आपदा और रैणी आपदा से सबक ले पायी है।