देहरादून- 5 वर्ष से अधिक लम्बी सुनवाई के बाद आखिकर न्यायालय ने अपना निर्णय सुनाते हुए सुभारती के चेयरमैन डा. अतुल कृष्ण को चैक बाउंस मामले में बाइज्जत बरी कर ही दिया। न्यायालय ने कहा कि परिवादियों को चैक डा. अतुल कृष्ण द्वारा श्री श्री 1008 नारायण स्वामी चैरिटेबिल ट्रस्ट की इकाई सुभारती एजूकेशन एण्ड ट्रेनिंग यूनिवर्स के ट्रस्टी होने की है हैसियत से उसी इकाई के खाते से दिए गए थे। परिवादियों ने ट्रस्ट को अभियुक्त बनाने के स्थान पर डा. अतुल कृष्ण को उनकी व्यक्तिगत क्षमता के अतंर्गत उत्तरदायी बताते हुए वाद योजित किया जबकि ट्रस्ट को अभियुक्त बनाए बिना ट्रस्टी को अभियक्त नहीं बनाया जा सकता।
मनीष वर्मा, संजीव वर्मा और नीतू वर्मा ने किया निर्दोष घोषित
देहरादून की न्यायालय अपर मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट, देहरादून जिसके अंतर्गत धारा 138 एन.आई. एक्ट के अन्तर्गत योजित परिवादों का भी निष्पादन जिया जाता है. हाल ही में अपना निर्णय सुनाते हुए मनीष वर्मा, संजीव वर्मा और नीतू वर्मा ने एन.आई. एक्ट की धारा 138 के अन्तर्गत डा. अतुल कृष्ण के विरूद्ध दायर वादों में निर्दोष घोषित किया साथ ही कहा कि परिवादी यह साबित करने में विपफल रहे हैं कि डा. अतुल कृष्ण की उनके प्रति कोई देनदारी थी जिसके प्रतिपफल के रूप में उनके द्वारा चैक दिए गए हों, जो कि बैंक द्वारा अनादरित किए गए।
एक सोची समझी साजिश
ज्ञातव्य हो कि देहरादून में मनीष वर्मा, संजीव वर्मा एवं श्रीमती नीतू वर्मा द्वारा वर्ष 2011 में तीन परिवाद योजित किए गए थे जिनमें डा. अतुल कृष्ण पर लगभग 2 करोड़ पचास लाख के चैक देकर उनका भुगतान न करने का आरोप लगाया गया था।
परिवादियों के अनुसार डा. अतुल कृष्ण ने परिवादियों से कुछ उपकरण क्रय किए थे जिनके प्रतिपफल के रूप में तीन अलग अलग चैक जिनकी कुल राशि 2 करोड़ पचास लाख के लगभग थी, दिए थे। जब परिवादियों ने वे चैक बैंक में लगाए तो वे अनादरित हो गए। इस प्रकार आरोप था कि डा. अतुल कृष्ण ने एक सोची समझी साजिश के तहत परिवादियों को धोखा दिया। इन परिवादों में डा. अतुल कृष्ण को जमानत लेनी पड़ी थी। इसके विपरीत डा. अतुल कृष्ण का पक्ष था कि उन्होंने श्री श्री 1008 नारायण स्वामी ट्रस्ट की ट्रस्टीशिप लेने पर उसकी देनदारियों के निबटारे के लिए वे चैक दिए थे।
मनीष वर्मा, संजीव वर्मा एवं नीतू वर्मा ने ट्रस्ट की न तो बैलेन्सशीट दी और न ही भूमि का दाखिल खारिज कराया। जांच करने पर पता चला कि मनीष वर्मा, संजीव वर्मा एवं नीतू वर्मा ने ट्रस्ट में स्वंय अनियमितता कर रखी थी और लगभग 344 बीघा भूमि होने पर भी 100 बीघा भूमि के बैनामों में हरेपफेर किया हुआ था। जब उन्हें इस बात का पता चला तो उन्होंने मनीष वर्मा, संजीव वर्मा एवं नीतू वर्मा को दिए हुए लगभग 2.5 करोड़ के चैकों के भुगतान पर रोक लगवा दी और मनीष वर्मा, संजीव वंर्मा एवं नीतू वर्मा के विरुद्ध प्राथमिकी सं. 1/2013 दर्ज करा दी। यह भी सूच्य है कि इस प्राथमिकी में तीनों को दोषी पाते हुए उनके विरूद्ध( भा.द. संहिता की विभिन्न धराओं के अन्तर्गत जांच अधिकारी के जरिए सक्षम न्यायालय में आरोप पत्रा दाखिल किया जा चुका है तथा मनीष वर्मा, संजीव वर्मा एवं नीतू वर्मा इस केस में जमानत पर हैं।
वाद में 5 वर्ष से अध्कि की लम्बी सुनवाई के बाद न्यायालय तृतीय अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, देहरादून द्वारा निर्णय सुनाया गया। विद्वान न्यायालय ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि तीनों वादों में परिवादियों को चैक डा. अतुल कृष्ण द्वारा श्री श्री 1008 नारायण स्वामी चैरिटेबिल
ट्रस्ट की इकाई सुभारती एजूकेशन एण्ड ट्रेनिंग यूनिवर्स के ट्रस्टी होने की है हैसियत से उसी इकाई के खाते से दिए गए थे। परिवादियों ने ट्रस्ट को अभियुक्त बनाने के स्थान पर डा. अतुल कृष्ण को उनकी व्यक्तिगत क्षमता के अतंर्गत उत्तरदायी बताते हुए वाद योजित्त किया जबकि ट्रस्ट को अभियुक्त बनाए बिना ट्रस्टी को अभियक्त नहीं बनाया जा सकता।
आरोप साबित करने में रहे विफल
विद्वान न्यायालय ने यह भी कहा गया कि परिवाद में अपने साक्ष्य के आधार मनीष वर्मा, संजीव वर्मा एव नीतू वर्मा यह साबित करने में भी विपफल रहे हैं कि चैक उन्हें उनकी किसी देनदारी के एवज में दिया गया हो। मनीष वर्मा, संजीव वर्मा एवं श्रीमती नीतू वर्मा द्वारा डा. अतुल कृष्ण पर लगाए गए सभी आरोप झूठे पाए गए अतः विद्वान न्यायालय द्वारा डा. अतुल कृष्ण को निर्दोष करते हुए वादों का निस्तारण किया।
मीडिया से बात करते हुए डा. अतुल कृष्ण ने कहा कि पिछले अनेकों वर्षा में उनके द्वारा की जा रही निःस्वार्थ सेवा एवं प्रगति से व्यथित होकर उनके विरोधी उन पर अनेकों झूठे वाद प्राथमिकी दर्ज करते रहे हैं परन्तु वे सदैव सच्चाई पर चले हैं और देर ही सही पर अन्त में जीत उन्हीं की होती है। उन्होंने कहा कि देश की न्याय व्यवस्था में सुधर की आवश्यकता है ताकि झूठी रिपोर्ट वाद योजित करने वालों को उचित दण्ड दिया जा सके।
उन्होंने कहा कि वर्तमान व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति किसी के भी विरू( झूठा केस दायर करके उसे अनेक वर्षों तक परेशान करता है और यह साबित होने के बाद भी कि वादी ने झूठा केस दर्ज कराया था, उसके विरुद्ध भी कार्यवाई नहीं होती। उन्होंने कहा कि उनके विरुद्ध अभी भी कुछ वाद मा. न्यायालयों के समक्ष विचाराधीन हैं तथा उन्हें न्यायपालिका पर विश्वास है, देर से ही सही परन्तु सभी में मा. न्यायालय द्वारा दोषमक्त किए जाएंगे क्योकि वे सत्य पर चलते हैं तथा किसी का बुरा करने की कभी नहीं