जिन तीन कृषि कानूनों को सरकार ने ऐतिहासिक बताया था। जिनके प्रचार के लिए देशभर में प्रधानमंत्री नरेंद्र समेत कई केंद्रीय नेताओं ने किसानों के विरोध में रैलियां की। लगातार, तीनों कृषि कानूनों को कृषि के क्षेत्र में क्रांति लाने वाला बताया। इन कानूनों को लाने के लिए सरकार ने संसद में भी कोई चर्चा नहीं की थी। आज एक साल बाद उन कानूनों को सरकार ने वापस ले लिया। कानून जिस तरह से लाए गए थे, ठीक उसी तरह बगैर चर्चा के ही वापस भी हो गए।
संसद के शीतकालीन सत्र का पहला दिन था और पहले ही दिन ही तीनों कृषि कानूनों की वापसी पर संसद ने मुहर लगा दी। विपक्ष के जोरदार हंगामे के बीच विवादस्पद कानून की वापसी का विधेयक संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा से पारित हो गया। विपक्ष कृषि कानूनों की वापसी वाले विधेयक पर चर्चा कराने पर अड़ा था। लेकिन सरकार इस पर राजी नहीं हुई और आनन-फानन में यह विधेयक दोनों सदनों से पारित करा लिया गया। अब यह विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा और इसी के साथ तीनों कानून समाप्त हो जाएंगे।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बिना चर्चा के सदन में विधेयक पारित हुआ। यह तीनों कानून किसानों के अधिकारों पर अतिक्रमण था। उन्होंने कहा कि ये किसानों की जीत है, लेकिन जिस तरह से बिना चर्चा के ये सब हुआ, वो दिखाता है कि सरकार चर्चा से डरती है। विपक्ष इस पर चर्चा चाहता था, लेकिन सरकार बहस से डरती है।
सत्र की शुरुआत से पहले जब बिजनेस एडवाजरी कमिटी की बैठक हुई थी तब विपक्षी दलों ने एकमत से सरकार से यह मांग की थी कृषि कानून वापसी वाले विधेयक पर चर्चा कराना जरूरी है। क्योंकि पीएम के कहने के बाद भी किसानों ने आंदोलन वापस नहीं लिया है और उनके कई मुद्दे जस के तस हैं। लिहाजा सरकार को इस पर चर्चा करानी चाहिए। विपक्ष इस पर चर्चा कराने को एकमत था, लेकिन सरकार ने किसी की नहीं सुनी। सरकार ने यह विधेयक जैसे पारित कराया था, उसी तरह वापस ले लिया।