आखिरकार संभलते संभलते ही सही लेकिन त्रिवेंद्र सरकार ने एनएच 74 निर्माण में मुआवजा घोटाले में दो आईएएस अफसरों को सस्पेंड कर एक ऐतिहासिक काम तो कर ही दिया है। संभवतः ये पहला मौका है जब किसी मुख्यमंत्री ने राज्य में तैनात दो आईएएस अफसरों को सस्पेंड करने का साहस दिखाया हो।
ऐसे में जब उत्तराखंड को नौकरशाहों का स्वर्ग कहा जाता है तो आईएएस अफसरों के खिलाफ कोई मुख्यमंत्री सोच भी नहीं सकता। सीएम त्रिवेंद्र रावत ने न सिर्फ राज्य के लोगों की उस अवधारणा को तोड़ा है कि अधिकारियों का कुछ नहीं बिगड़ता बल्कि अधिकारियों को भी संदेश दे दिया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में फिलहाल कोई रियायत नहीं बरती जाएगी।
कई घोटालों और अनियमितताओं में राज्य के बड़े अधिकारियों के नाम भी पहले भी सामने आ चुके हैं। हालात ये हुए कि हाईकोर्ट को कहना पड़ गया लेकिन मुख्यमंत्री की हिम्मत नहीं हुई अधिकारियों पर कार्रवाई करने की। ऐसा ही वाक्या रमेश पोखरियाल निशंक की सरकार में हुआ था। स्टर्डिया घोटाले से चर्चा में आए एक अफसर को हटाने के लिए हाईकोर्ट ने कहा लेकिन निशंक की बतौर मुख्यमंत्री उस अफसर को हटाने की हिम्मत नहीं हुई।
उत्तराखंड में यूं भी अफसरों और सफेदपोशों के बीच आपसी तालमेल अच्छा माना जाता है। नेताओं से अफसरों की करीबी उन्हें फाएदा पहुंचाती और ठीक इसका उल्टा भी होता रहा है। हालांकि इस बीच त्रिवेंद्र रावत के दो आईएएस अफसरों को सस्पेंड करने से इस तालमेल के सहारे चल रहे कई संबंधों को झटका तो लगेगा ही।