श्रीमहंत नरेंद्र गिरि की मौत के बाद से ही उनके करीबी शिष्यों में शामिल महंत बलवीर पुरी चर्चाओं में आ गए हैं वो भी इसलिए क्योंकि नरेंद्र गिरी के सुसाइड नोट में बलवीर पुरी का नाम है और नरेंद्र गिरी उनको अखाड़े का उत्तराधिकारी बनाने की बात कह गए हैं। जानकारी मिली है कि बलवीर नरेंद्र गिरी के विश्वासपात्र रहे है।
साल 1998 में निरंजनी अखाड़े के संपर्क में आए थे बलवीर पुरी
आपको बता दें कि साल 1998 में निरंजनी अखाड़े के संपर्क में आए थे। श्रीमहंत नरेंद्र गिरी से उनका संपर्क साल 2001 में हुआ। उस वक्त श्रीमहंत नरेंद्र गिरि निरंजनी अखाड़े के कारोबारी महंत थे।बलवीर पुरी ने अखाड़े में श्रीमहंत के संपर्क में आने के बाद दीक्षा ग्रहण कर उनके शिष्य बन गए थे। इसके बाद बलवीर पुरी उनके घनिष्ठ और विश्वासपात्र सहयोगी के तौर पर आगे बढ़ते चले गए। श्रीमहंत नरेंद्र गिरि जब निरंजनी अखाड़े की ओर से बाघम्बरी गद्दी के पीठाधीश्वर बन कर प्रयागराज (तब इलाहाबाद) गए तो बलवीर पुरी भी उनके साथ वहां चले गए।
खर्च को आने वाले लाखों रुपये उनके पास ही रहते थे नरेंद्र गिरी
जानकारी मिली है कि श्रीमहंत नरेंद्र गिरि ने बलवीर पुरी को जो भी जिम्मेदारी सौंपी उन्होंने पूरी कर्मठता और निष्ठा से उसे निभाया। श्रीमहंत नरेंद्र गिरि की उन पर निर्भरता और विश्वास इस कदर था कि कुंभ और बड़े पर्व के दौरान अखाड़े और मठ की ओर से खर्च को आने वाले लाखों रुपये उनके पास ही रहते थे और उन्हीं की देखरेख में इससे खर्च किया जाता था। इस साल हुए हरिद्वार कुंभ के दौरान भी उन्होंने इस भूमिका की निभाया।
साए की तरह हर वक्त उनके साथ रहते थे बलवीर पुरी
महंत बलवीर पुरी श्रीमहंत नरेंद्र गिरि के साए की तरह हर वक्त उनके साथ रहते थे।2019 में हुए प्रयागराज अर्द्धकुंभ में भी बलवीर पुरी ने अखाड़े की तरफ से अहम भूमिका निभाई थी। श्रीमहंत नरेंद्र गिरि और निरंजनी अखाड़े ने कर्तव्यनिष्ठा को देखते हुए उन्हें हरिद्वार के विख्यात शिवालय बिल्केश्वर महादेव के संचालन की जिम्मेदारी सौंप दी। हालांकि वह अखाड़े के किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं थे पर, उनकी सेवाएं और निष्ठा के चलते अखाड़े ने उन्हें यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी थी। इसके बाद से ही बलवीर पुरी और श्रीमहंत नरेंद्र गिरि का साथ छूट गया। श्रीमहंत नरेंद्र गिरि के हरिद्वार प्रवास के दौरान बलवीर पुरी उनकी सेवा में पहुंच जाते थे। श्रीमहंत की मौत के बाद सामने आए सुसाइड नोट में उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने के योग्य बताते हुए उत्तराधिकारी के तौर पर पेश भी किया जिसके बाद बवाल हो गया है।
कई संतों का कहना है कि नरेंद्र गिरी को लिखना नही आता था जबकि एक चैनल ने दावा करते हुए कहा कि नरेंद्र गिरी पढ़े लिखे थे औऱ उनकी मार्कशीट चैनल के पास है। नरेंद्र गिरी बैंक में पीओ की नौकरी भी करते थे लेकिन साधू संत को देख कर उनका मन खुश होता था और इसलिए वो घर से भाग गए।