हर साल आषाढ़ महिने में Jagannath rath yatra निकाली जाती है। आज देश भर में जगन्नाथ यात्रा की धूम देखने को मिल रही है। इस यात्रा का अपना विशेष महत्तव है। आइये जानते है जगन्नाथ यात्रा निकालने की कहानी और कारण।
द्वापर युग से जुड़ी है Jagannath rath yatra
जगन्नाथ यात्रा को निकालने के पीछे पौराणिक मान्यता है द्वापर युग से जुड़ी हुई बताई जाती है। कहा जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण से उनकी बहन सुभद्रा ने द्वारका देखने की इच्छा जताई तो श्रीकृष्ण ने अपनी बहन की इस इच्छा को पूरा करने के लिए सुभद्रा और भाई बलभद्र जी को रथ पर बैठाकर द्वारका की यात्रा निकाली थी। जिसके बाद से ही हर साल भगवान जगन्नाथ के संग बलभद्र और सुभद्रा की रथ यात्रा निकाली जाने लगी।
इतने दिनों तक चलती है रथ यात्रा
ओडिशा की विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन निकाली जाती है जो दशमी तिथि तक चलती है। इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा विराजमान होते हैं। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पुरी के मंदिर से निकलते हुए गुंडिचा मंदिर जाती है, जहां वो दशमी तक विराजमान रहते हैं फिर उसके बाद अपने घर यानी पुरी के मंदिर में वापस आ जाते हैं। इस यात्रा में शामिल होने के लिए हर साल लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
Jagannath rath yatra निकालने का महत्तव
उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का विशेष महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि ये मंदिर को भारत के चारों पवित्र धामों में से एक है। यही वजह है कि प्राचीन काल से चली आ रही रथ यात्रा की परंपरा आज भी निभाई जा रही है। वहीं इस यात्रा में शामिल होने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में भक्त रहते हैं।