काशीपुर : प्रदेश में मुख्यमंत्री की जीरोटॉलरेंस नीति को पलीता त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अधिकारियों की मिलीभगत या फिर क्षेत्र पंचायत सदस्य पद के उम्मीदवार की चालाकी ने खुल्लमखुल्ला लगाया गया है। जिसने राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा 6 वर्ष की लगी रोक के बाद भी बीडीसी के लिए चुनाव मैदान में ताल ठोंक दी।
ऐसा ही एक मामला काशीपुर विकास खंड में सामने आया है। 2014 में धनौरी क्षेत्र पंचायत सदस्य पद पर चुनाव लड़ने के बाद आए व्यय का ब्यौरा न देने पर वंदना पत्नी नरेश को राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा छह वर्ष के लिए चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया। इसके बाद भी उन्होंने 2019 में चांदपुर क्षेत्र पंचायत से चुनाव लड़ चर्चाओं का माहौल बना दिया है। प्रतिबंधित लिस्ट में नाम होने के बाद भी सहायक निर्वाचन अधिकारी ने चुनाव लड़ने की उसे अनुमति दे दी और तो और जांच अधिकारियों की भी नजर इस तरफ नही गयी। यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
राज्यपाल के साथ-साथ राज्य निर्वाचन आयोग को दी जानकारी
अधिवक्ता संजीव कुमार आकाश पुत्र पोशाकी लाल के मुताबिक उन्होंने इसकी जानकारी राज्यपाल के साथ-साथ राज्य निर्वाचन आयोग को भी दे दी है। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा राज्यपाल और राज्य निर्वाचन आयुक्त को भेजे पत्र में कहा है कि त्रिस्तरीय पंचायत सामान्य निर्वाचन-2014 में वंदना पत्नी नरेश निवासी चांदपुर, तहसील काशीपुर द्वारा धनौरी क्षेत्र पंचायत-05 से चुनाव मैदान में ताल ठोंकी थी। लेकिन राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकतम निर्वाचन व्यय और उसकी लेखा.
6 साल के लिए लगाया था बैन, फिर भी लड़ा चुनाव
प्रस्तुति आदेश-2003 के प्राविधानुसार निर्वाचन व्यय विवरण जमा नहीं किया गया। आय-व्यय का ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराने पर राज्य निर्वाचन आयोग ने काशीपुर विकास खंड से 157 क्षेत्र पंचायत सदस्यों पर छह वर्ष तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया। इसके लिए राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा 18 अप्रैल 2015 को शासनादेश जारी किया गया। आदेश जारी होने की तिथि से छह वर्ष तक प्रत्याशियों को प्रतिबंधित किया गया, लेकिन इसके बाद भी वंदना पत्नी नरेश द्वारा आठ-चांदपुर क्षेत्र पंचायत से प्रतिबंध होने के बाद भी 23 सितंबर 2019 को नामांकन भरा गया। जबकि प्रत्याशी को इस बात की भलीभांति जानकारी थी। इतना ही नहीं अधिकारियों के पास भी प्रतिबंधित लोगों की लिस्ट होगी। इसके बाद भी प्रतिबंधित लोगों को चुनाव के लिए योग्य मान लिया गय
चर्चाएं यह भी हैं कि प्रतिबंधित लोगों में चुनाव लड़ने वाली अकेली वंदना ही नहीं और भी बहुत लोग हैं। यदि इसकी जांच कराई गई तो जहां एक तरफ कई लोगों के पर्चे खारिज हो सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ सहायक निर्वाचन अधिकारी पर भी गाज गिर सकती है।