ब्यूरो – बेशक उत्तराखंड राज्य की अर्थव्यवस्था घाटे में चल रही हो। राज्य खनन और शराब की बैशाखियों को सहारे विकास के पथ पर घिसट-घिसट के चलता दिखाई दे रहा हो,बावजूद इसके ये राज्य मुल्क की हिफाजत में सबसे आगे है।
सेना को औसतन सबसे ज्यादा जवान देने वाला उत्तराखंड मुल्क की आबादी को साफ हवा-पानी भी मुहैया करवा रहा है। इसके जंगल विकसित शहरों के पैदा हुए कार्बन को खत्म कर स्वच्छ भारत अभियान में अपना सक्रिय योगदान दे रहे हैं।
जीने के लिए साफ हवा की एक सांस और जीने के लिए एक घूंट पानी की कीमत क्या होती है इसे प्रदूषण में जीती हुई आबादी ही बता सकती है। साफ हवा के लिए एयरकंडीशन और पीने के लिए मिनरल वाटर की बोतल का इस्तमाल करने वाले नीति नियंता जानबूझ कर उत्तराखंड के इस योगदान से नजरें फेर रहे हैं।
बहरहाल इस बार सूबे के सीएम त्रिवेंद्र रावत ने नीति आयोग के बैठक में दो टूक राज्य हित की पैरोकारी करते हुए कह दिया कि उत्तराखंड को उसकी पर्यावरण सेवाओं के मूल्य का कम से कम 10 फीसदी सालना मिलना ही चाहिए। सीएम ने आयोग के सामने राज्य का पक्ष रखते हुए कहा कि उत्तराखंड अपने जंगलों के जरिए देश को 40 हजार करोड़ की पर्यावरणीय सेवा देता है। बदले में उसे कुछ नहीं मिलता।
जबकि उसके विकास कार्य राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण और पर्यावरण मंत्रालय के कानूनों की चपेट में आ जाते हैं। सीएम ने सेंसटिव जोन के उत्तराखंड पर पड़ रहे असर पर चर्चा करते हुए नीति आयोग से इसकी मांग की।
सीएम ने कहा कि जब तक ग्रीन अकाउंटिंग सिस्टम देश मे डेवलप नहीं हो जाता तब तक बतौर ग्रीन बोनस उत्तराखंड को हर साल चार हजार करोड़ रुपए मिलने चाहिए।