सूबे में धान किसानों को सीधा फायदा पहुंचाने के लिए नई धान खरीद नीति का दावा करने वाली टीएसआर सरकार को आखिरकार बिचौलियों यानि कच्चा आढ़तियों के सामने घुटने को मजबूर होना पड़ा है। अपने करीबियों के दबाव में आकर सरकार ने फिर से रोल बैक करते हुए बिचौलियों यानि कच्चा आढ़तियों(Commission agent) के जरिए खरीद नीति को ही मंजूरी दे दी है। यानि डबल इंजन के दौर में भी सरकार ने पुरानी धान खरीद नीति को जस का तस मंजूर करते हुए लागू करने का आदेश दे दिया है।
गजब तो ये है कि जिस नीति को धान की फसल पकने से कुछ समय पहले मंजूरी देनी चाहिए थी उस नीति को सरकार अब लागू करने का फरमान सुना रही है। जबकि जमीनी हकीकत ये है कि नवंबर के पहले पखवाडे के आखिरी दिनों में शायद ही तराई में किसी किसान के पास धान की फसल बेचने को रखी हो। गौरतलब है कि जब वक्त था तब सरकार धान का समर्थन मूल्य घोषित नहीं कर पाई नतीजतन सरकारी खरीद केंद्र के तराजू धान किसानों की बाट जोहते रह गए। जबकि राइस मिल मालिकों और बिचौलियों ने किसानों से धान की फसल औने-पौने दाम में खरीद ली।
अब जबकि सरकार ने बिचौलियों की भूमिका को पुरानी खरीद नीति की तरह जस का तस स्वीकार कर लिया है तो तय है कि किसानों ने औने-पौने दाम में धान खरीदने वाले बिचौलिए सरकार को उसके समर्थन मूल्य पर धान बेचकर मोटा मुनाफा कमाएंगे।
जाहिर सी बात है कि जीरो टॉलरेंस के दौर में सरकारी सुस्ती के चलते खेतों मे अपना पसीना बहाना वाला अन्नदाता फिर से ठगा गया, बिचौलियों की फिर से पौ-बारह हुई। यानि सूबे की टीएसआर सरकार अपना मनोबल बरकरार नहीं रख पाई और बिचौलियों के पैरोकारों के सामने घुटनों के बल बैठने को मजबूर हो गई। कहने वाले तंज कस रहे हैं कि जब सरकार को पुराने चावलों का ही भात खाना थो तो नए चावलों का दाम क्यों पूछा। कुछ कह रहे हैं जब सरकार को बिच्छू का मंत्र ही पता नहीं तो सांप के बिल में हाथ क्यों दिया। कुछ तो गंभीर तंज कसते हुए कह रहे हैं,” कहीं इसी को तो नहीं कहते थूक कर चाटना “