उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस की रजत जयंती पर प्रदेश भर में कार्यक्रम और आयोजन हो रहे हैं, लेकिन इन्हीं आयोजनों के बीच राज्य आंदोलनकारियों का दर्द भी छलक पड़ा है।
राज्य आंदोलनकारियों ने सरकार पर लगाया अनदेखी का आरोप
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप कुकरेती ने कहा कि जिन आंदोलनकारियों के बलिदान और संघर्ष से उत्तराखंड राज्य बना, उन्हीं को अब उपेक्षित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रजत जयंती वर्ष के तहत अब तक जितने भी बड़े आयोजन हुए चाहे वह इगास पर्व हो, सांस्कृतिक कार्यक्रम हों या विधानसभा का विशेष सत्र उनमें एक बार भी किसी राज्य आंदोलनकारी को आमंत्रित नहीं किया गया।
नींद में है शासन- प्रशासन और जनप्रतिनिधि : आंदोलनकारी
आंदोलनकारियों ने कहा हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस राज्य के लिए हमने आंदोलन किया, उसी राज्य में हमें निमंत्रण वरिष्ठ आंदोलनकारी द्वारिका बिष्ट, शिवानंद चमोली और सुलोचना भट्ट ने भी सरकार और प्रशासन पर उपेक्षा का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि शासन-प्रशासन तो नींद में है, और जनप्रतिनिधि भी नींद का बहाना बनाकर हमें भूल गए हैं। हमसे मिलने या एक पुष्पगुच्छ भेंट करने तक की शिष्टता भी नहीं दिखाई गई।
सलाहकारों को दी नसीहत
राज्य आंदोलनकारी मंच के महामंत्री रामलाल ने कहा कि सत्ता दल को इस उपेक्षा पर गंभीरता से गौर करना चाहिए। अगर सीएम के आस-पास कोई नजदीकी सलाहकार हैं, तो वे उन्हें जगाएं। आंदोलनकारियों की अनदेखी राज्य की आत्मा की अनदेखी है। आंदोलनकारियों का कहना है कि उत्तराखंड की रजत जयंती उनके लिए गर्व का नहीं, बल्कि आत्ममंथन का विषय बन गई है, क्योंकि जिनके संघर्ष से यह राज्य बना, वही आज समारोहों में कहीं दिखाई नहीं दे रहे।



