देहरादून(दीपिका रावत)- श्रमिक और मजदूर देश के कर्ता-धर्ता हैं. जितना देश को चलाने में भागीदारी एक नेता, एक सैनिक, पुलिस, किसान और कई तमाम लोगों की होती है ठीक वैसी ही श्रमिक औऱ मजदूरों की होती है. उनके बिना देश को चलाना नामुमकिन है. क्योंकि हर कोई बड़ा ख्वाब, गद्दी और एयरकंडीशन में बैठकर काम करना पसंद करता है लेकिन श्रमिक औऱ मजदूर ही है जो खून-पसीना बहाकर काम करते हैं औऱ उसका सुख पूरा देश औऱ विदेश के लोग लेते हैं या यूं कहें कि श्रमिक और मजदूरों की मेहनत के बाद ही हम हर सुविधा का लुफ्त उठा पाते हैं.
एयर कंडीशन में बैठने वाले क्या जाने मजदूर-श्रमिक के खून पसीने की कीमत
लेकिन उन श्रमिकों और मजदूरों को प्रतिदिन ध्याड़ी दी जाती है वो भी मामूली. वहां एयर कंड़ीशन में बैठे मंत्री-विधायक और अधिकारियों को इस बात का अंदाजा भी नहीं होगी की एक मजदूर को एक मकान बनाने में कितना किलो खून-पसीना बहाना पड़ता है, क्योंकि मंत्री-विधायकों औऱ अधिकारियों को तो पता भी नहीं होगा पसीना होता क्या है क्यों एयर कंडीशन की ठंडी हवा सुखा जो देती है. मजदूरों औऱ श्रमिकों को कम पैसे तो छोड़िए वेतन तक नहीं दिया जाता.
4-5 महीने से वेतन न मिलने के कारण श्रमिक दम तोड़ रहे हैं औऱ सरकार मौज में
4-5 महीने से वेतन न मिलने के कारण श्रमिक दम तोड़ रहे हैं औऱ सरकार मौज में है. श्रमिकों के पास पैसे नहीं है न ही घर चलाने के लिए औऱ न ही अपने इलाज के लिए. सोचिए एक तरफ बड़े-बड़े स्कूलों में जाते मंत्री-विधायकों के बच्चे और दूसरी तरफ वो श्रमिक जो दिन रात एक करके कमाता है ताकि सुख-चेन से दो वक्त की रोटी खा सके औऱ उनके बच्चे सरकारी स्कूल ही सही लेकिन पढ़ सकें. लेकिन सरकार के पास पैसा नहीं है उन्हे देने के लिए. ध्यान हो कि बाजपुर शुगर मिल में 72 घंटे में दूसरे श्रमिक की मौत हो गई. क्योंकि श्रमिकों को 4-5 महीने से वेतन नहीं मिला. उनके पास फूटी कोड़ी भी नहीं है अपने इलाज तक के लिए. परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है लेकिन उनका दर्द सरकार कैसे जाने.
1100 कर्मचारियों के 5 माह के वेतन बकाया है.
5 महीने से वेतन ना मिलने की वजह से चीनी मिल कर्मचारी एक के बाद एक पैसे के आभाव में मौत को गले लगा रहें हैं. इन चीनी मिलों के श्रमिकों के लियें ये चीनी मिल यमराज का रूप बन गया है. चीनी मिल के 1100 कर्मचारियों के 5 माह के वेतन बकाया है. चीनी मिल और शासन की हटधर्मिता के चलते इन कर्मचारियों को मौत के मुहं में समाने पर मजबूर होना पड़ रहा है.ये 3 दिनों में 2 कर्मचारयो की पैसे के आभाव में बीमार कर्मचरियों की मौत हुई है ।
मंत्री-विधायकों को पहले जनता की नहीं अपनी फिक्र
गौर हो कि गैरसैंण बजट सत्र में और तो छोड़िए लेकिन सबसे पहले विधायकों के वेतन में बढ़ोतरी की गई क्योंकि उनको वो सैलरी कम लगी…क्या श्रमिकों का वेतन भी मंत्री-विधायक खा गए या उऩके पैसों से अपनी सैलरी बना रहे हैं…बड़े शर्म की बात है कि जनता के लिए चुने जाने वाले मंत्री पहले जनता की नहीं अपनी फिक्र करते हैं तभी तो वेतनमान में आसानी से बढ़ोतरी कर ली.
एक तरफ श्रमिक दम तोड़ रहे दूसरी ओऱ सरकार बेशर्म हो बैठी
एक ओऱ जहां वेतन न मिलने के कारण श्रमिक दम तोड़ रहे तो वहीं दूसरी ओऱ सरकार बेशर्म हो बैठी है. जब अपनी ताजपोशी और दौरे से, भाषण से फुरसत मिले तो ही तो श्रमिकों पर उनका ध्यान जाए.
हेलीकॉप्टर न मिला तो सीएम साहब ने अपना पौड़ी दौरा रद्द किया तो सोचिए
हेलीकॉप्टर न मिला तो सीएम साहब ने अपना पौड़ी दौरा ही रद्द कर डाला तो जरा सोचिए सीएम साहब उस श्रमिकों के घर की हालत कैसी होगी जिनके घर में 4-5 महीने से एक फूटी-कोड़ी तक नहीं आई. कैसे उनके बच्चे पढ़-लिख रहे होंगे, क्या खा रहे होंगे.
देखने वाली बात सरकार कोई कदम उठाती भी है कि यूं ही बेर्शम बनी रहती है
कुछ भी हो श्रमिकों के मौत के जिम्मेदार कहीं न कहीं राज्य सरकार है जिनका ध्यान सिर्फ उपर रहता है नीचे देखने की जहमत नहीं उठाते…शायद सरकार को अहम हो गया…कहीं ये अहम उन्हे एकदिन ले न डूबे.
देखने वाली बात होगी की सरकार दो श्रमिकों की मौत हो जाने के बाद कोई कदम उठाती भी है कि यूं ही बेर्शम बनी रहती है.