टिहरी- सूबे की सरकार पलायन रोकने की जुगत में जुटी है। तमाम तरह के सलाहकारों और दिल्ली-मुबंई में रहने वाले नामचीन हस्तियों से मशविरा किया जा रहा है,ताकि पलायन का कैंसर इस राज्य के असली हिस्से को खोखला होने से बचा सके।
जबकि ताज्जुब की बात तो ये है कि जिन बुनियादी सहूलियतों की वजह से पलायन हो रहा है उसका ट्रीटमेंट नहीं किया जा रहा है। सड़क,सेहत और शिक्षा की बेहतरी के सवाल सुरसा की तरह मुंह बाए खड़े हैं लेकिन मजबूत इच्छा शक्ति की कमी की वजह से कोई समाधान नहीं निकल पाया।
ऐसे सवालों की तफ्तीश करो तो अहसास होता है कि या तो सरकारों को उन पहाड़ों की कोई खबर नहीं है या फिर उनके अच्छे दिनों के लिए कोई दिलचस्पी नहीं है। अगर होती तो आज पहाड़ी राज्य को सुगम और दुर्गम में बांट चुके सिस्टम के लिए मसूरी की पहाड़ियां और जौनपुर विकासखंड की पहाडियों के लिए फर्क नहीं होता।
कितनी अजब बात है कि जौनपुर विकासखंड के साटागाड़ हाईस्कूल की इमारत साल 2013 की आपदा की भेंट चढ़ गई लेकिन चार साल बाद भी उस स्कूल की इमारत नहीं बन पाई है। स्कूल किस हालात मे है न सरकार को पता है न सिस्टम को खबर है।
जबकि इस स्कूल की हकीकत ये है कि बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओं के नारे के बीच साटागाड़ हाईस्कूल में 71 छात्र-छात्राएं हैं। आपदा के बाद स्कूल को बगल के गांव बांन्सी में शिफ्ट किया गया। जहां दर्जा नौ और 10 में पढ़ने वाले 71 स्कूली बच्चों को जूनियर स्कूल में तालीम दी जा रही है। जिला पंचायत टिहरी की ओर से जूनियर हाईस्कूल के लिए टीनशेड का इंतजाम किया गया है। लेकिन साटागाड़ जहां हाईस्कूल का मूलभवन था उसे विभाग और सरकार ने बिसरा दिया है।
सूबे में सरकारी तालीम की ये डरावनी तस्वीर उस सिस्टम की हकीकत बयां कर रही है जिस पर सूबे की जनता को ऐतबार है कि पहाड़ों के अच्छे दिन जरूर आएंगे। तकनीक के जिस दौर में बहुमंजिला इमारत बनने में भी 24 घंटे लगते हैं उसी तकनीक के दौर में साटागाड़ का तबाह हाईस्कूल चार साल बाद भी नहीं बना।