देहरादून : सहकारी समितियों पर पड़ी मार से उत्तराखंड में राज्य सहकारी संघ भी भंग होने के कगार पर पहुंच गया है। कांग्रेसी वर्चस्व वाले संघ के 14 सदस्यीय निदेशक मंडल के 10 निदेशकों की सदस्यता पर तलवार लटक गई है। ये निदेशक उन 97 सहकारी समितियों से चुनकर आए हैं, जिनके सदस्यों की सदस्यता भंग करने की कार्रवाई चल रही है।
सहकारिता विभाग की जांच में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि ये समितियां नियमानुसार संचालित नहीं हो रही थीं। सदस्यों की सदस्यता भंग होने पर इनके बीच से चुने गए संघ के निदेशकों की सदस्यता भी भंग हो जाएगी।
प्रदेश में प्रचंड बहुमत से सत्तासीन भाजपा सरकार ने राज्य गठन से लेकर अब तक राज्य सहकारी संघ के अधीन गठित करीब डेढ़ सौ समितियों की जांच कराई। बात सामने आई कि इनमें से 97 समितियां ऐसी हैं, जो नियमानुसार संचालित नहीं हो रहीं।
इनमें से अधिकांश के कार्यालय तक नहीं हैं। यही नहीं, सदस्यों के निर्वाचन आदि का रिकार्ड तक उपलब्ध नहीं है। इस पर विभाग ने इन सभी समितियों को नोटिस भेजे, लेकिन जवाब संतोषजनक नहीं पाए गए। लिहाजा, विभाग ने पहले चरण में 97 में से 70 समितियों के सदस्यों की सदस्यता भंग करने का निर्णय लिया है।
सूत्रों ने बताया कि सहकारिता विभाग की ओर से एक-एक कर इन समितियों के सदस्यों की सदस्यता भंग की जाएगी। इसकी कार्रवाई प्रारंभ की जा रही है और धीरे-धीरे इनके शेयर वापसी की कवायद होगी। इस सबका असर राज्य सहकारी संघ के बोर्ड पर भी पड़ेगा। असल में इन समितियों से ही पहले डेलीगेट्स चुने जाते हैं और फिर इन डेलीगेट्स में से संघ के बोर्ड में निदेशक चुनकर जाते हैं।
नियमानुसार समिति की सदस्यता खत्म होने पर निदेशक की सदस्यता स्वत: ही खत्म हो जाएगी। इस सबके चलते कांग्रेस के वर्चस्व वाले राज्य सहकारी संघ का बोर्ड अल्पमत में आ जाएगा और सरकार के सामने उसे भंग करने का रास्ता साफ हो जाएगा।
27 समितियों पर फैसला जल्द
निबंधक सहकारी समितियां बीएम मिश्रा के अनुसार जांच के बाद 97 में से 70 सहकारी समितियों के सदस्यों की सदस्यता भंग करने का निर्णय लिया गया है। शेष 27 समितियों से आए नोटिस के जवाब की पड़ताल चल रही है। जल्द ही इनके संबंध में भी फैसला ले लिया जाएगा।
टिब्यूनल अथवा अदालत में कर सकते हैं अपील
सहकारिता विभाग ने जिन समितियों के सदस्यों की सदस्यता भंग करने का निश्चय किया है, उनके सामने ट्रिब्यूनल में जाने का रास्ता खुला रहेगा। इससे संतुष्ट न होने पर वे अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।