अब ऋषिकेश से केदारनाथ तक का सफर पौराणिक मार्ग से ट्रैकिंग कर भी तय किया जा सकेगा। ऋषिकेश से केदारनाथ तक के पौराणिक मार्ग पर प्रकृति और अध्यात्म का अनूठा संगम होगा। इस यात्रा मार्ग पर यात्री मां गंगा के किनारे-किनारे प्रकृति की विविधता के एहसास को आत्मसात करते हुए यात्रा का लुत्फ उठा सकेंगे।
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पौराणिक मार्ग से ऋषिकेश से केदारनाथ तक कर सकेंगे ट्रैकिंग
ऋषिकेश से केदारनाथ तक अब पौराणिक मार्ग से ट्रैकिंग कर सफर तय कर सकेंगे। इस पौराणिक मार्ग के मूल स्वरूप को फिर से जीवित करने के लिए डीएम पौड़ी डाॅ. आशीष चौहान ने पहल की है। इसके साथ ही डीएम पौड़ी ने गा पदयात्रा शुरू किए जाने की योजना तैयार की है।
डीएम पौड़ी ने 22 किमी चलकर की इसकी पहल
डीएम पौड़ी डाॅ. आशीष चौहान ने ऋषिकेश से केदारनाथ तक के पौराणिक मार्ग पर खुद इस मार्ग पर 22 किमी की पदयात्रा भी की है। इस पर उन्होंने बताया कि इस मार्ग पर प्रकृति और अध्यात्म का अनूठा संगम होगा।
इसके साथ ही मां गंगा के किनारे-किनारे यात्री प्रकृति की विविधता के एहसास को आत्मसात करते हुए यात्रा का लुत्फ उठा सकेंगे। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि इस के शुरू होने से रोजगार व स्वरोजगार के नए अवसर भी विकसित होंगे।
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इस साल से शुरू होगी ऋषिकेश से देवप्रयाग तक पैदल चारधाम यात्रा
मिली जानकारी के मुताबिक इस योजना के अनुसार ऋषिकेश से देवप्रयाग तक पैदल चारधाम यात्रा इसी साल शुरू होगी। इसके तहत शुरू होने वाली गंगा पदयात्रा का आगाज साधु-संतों के पहले जत्थे के निकलने के साथ ही होगा। जो कि इसी साल से शुरू हो जाएगा।
इस रूट से दो बार स्वामी विवेकानंद ने भी की थी पदयात्रा
इस रूट से स्वामी विवेकानंद ने दो बार पदयात्रा की थी। पहली बार स्वामी विवेकानंद ने 1888 में बदरीनाथ के लिए यात्रा शुरू की थी। लेकिन उस बार हैजा फैलने के कारण उन्हें श्रीनगर से यात्रा को बीच में ही छोड़ना पड़ा था।
यात्रा को आधे में ही छोड़ कर उन्हें लौटना पड़ा था। 1891 में फिर से वो यहां आए। लेकिन इस बार वे स्वयं बीमार पड़ गए और कर्णप्रयाग से वापस लौट गए।