महेंद्र भट्ट के नामांकन में सारे सांसद और पदाधिकारी मौजूद रहे. मतलब मामला सर्वसम्मति से लेकर आलाकमान की हरी झंडी का है. खैर सर्वसम्मति का मतलब अब प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की सहमति ही होता है. जिस पर आज महेंद्र भट्ट के नाम पर मुहर साफ-साफ दिखाई दे रही है.
पुष्कर की विरोधियों को शह और मात
बात सिर्फ इतनी है नहीं जितनी दिख रही. ये नामांकन जहां महेंद्र भट्ट को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनाएगा. वहीं इस नामांकन ने फिलहाल चंडूखाने की सभी हवाओं को विराम देते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खिलाफ बिसात बिछा रहे बड़े बड़े क्षत्रपों के मुंह पर तमाचा मारते हुए ये सिद्ध किया है कि आज भी पुष्कर का जादू हाईकमान पर बदस्तूर कायम है.
दिल्ली से छन कर आने वाली हवाओं की बात मानी जाए तो मुख्यमंत्री धामी ने गढ़वाल- कुमाऊं और ठाकुर-ब्राह्मण समीकरण को साधते हुए हाईकमान को दो नाम सुझाए थे. यदि महेंद्र भट्ट को दोहरी जिम्मेदारी के साथ दोबारा रिपीट न करना हो तो एक पूर्व ब्राह्मण मुख्यमंत्री को अध्यक्ष बना दें और अगर कोई आपत्ति न हो तो महेंद्र भट्ट को रिपीट कर दिया जाए.
सीएम धामी की लिस्ट से महेंद्र भट्ट के नाम को किया फाइनल
पूर्व मुख्यमंत्री के नाम को दरकिनार करते हुए सीएम धामी की लिस्ट से महेंद्र भट्ट के नाम को हरी झंडी दे दी गई. माना जा रहा है कि इस सिलसिले में बीते दिनों हल्द्वानी में सीएम धामी के खिलाफ बिसात बिछाने को बड़े-बड़े दिग्गज जुटे जिनमें खासतौर पर वो बड़े नाम जरूर थे. जो हाईकमान की ओर से बड़े पोस्ट के लिए पहले रिजेक्ट होकर पद से हटाए जा चुके हैं.
उनके साथ ही कुछ वर्तमान दायित्वधारी और पदाधिकारियों ने जिस तरह दिल्ली में बैठी पुष्कर विरोधी लॉबी के इशारे पर बिसात बिछाने का काम किया उसकी तपिश राजधानी देहरादून तक सुनाई दी और डैमेज कंट्रोल के लिए एक अधिकारी के साथ-साथ मुख्यमंत्री को खुद मोर्चा संभालना पड़ा. उस लॉबी में मुख्यतः वही लोग हैं जो खुद प्रॉक्सी चीफ मिनिस्टर बनने का अरमान पाले हुए हैं. जिनको है कि वो आज बड़े पदों से पैदल होकर नाम मात्र की प्रादेशिक राजनीति में सिर्फ पुष्कर सिंह धामी की वजह से हैं, क्योंकि इन्हीं लोगों ने अपने कद का वीटो लगाकर सीएम धामी से मनमर्जी भी करवाने का दबाव बहुत बनाया.
खैर शतरंज की इस बिसात पर और विरोधियों की चौसर पर पुष्कर सिंह धामी ने महेंद्र भट्ट को फिर अध्यक्ष बनवाकर जबरदस्त मात दे दी है. ये पुष्कर की राजनीतिक जीत के साथ ही ये साबित करता है कि हवाएं कुछ भी फैलाई जाएं. आज भी मोदी और अमित शाह की पसंद पुष्कर ही हैं.
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