पहाड़ों पर होली की शुरूआत रंग एकादशी से हो जाती है। रंग एकादशी पर कुमाऊं पर चीर बंधन की परम्परा के साथ होली की शुरूआत हो जाती है। कुमाऊं की खड़ी और बैठकी होली देशभर में मशहूर है। आज पांरपरिक चीर बंधन के साथ ही कुमाऊं में होली की शुरूआत हो गई है।
चीर बंधन की परम्परा के साथ होली का आगाज
कुमाऊं में होली की शुरूआत रंग एकादशी के दिन चीर बंधन से होती है। कुमाऊं में होली में चीर या निशान बंधन का खासा महत्व है।

होलिकाष्टमी के दिन गांवों के मंदिरों में या सार्वजनिक स्थानों पर एकादशी का मुहूर्त देखकर चीर बंधन किया जाता है और एक-दूसरे को रंग लगाया जाता है और इसी के साथ पूरा पहाड़ रंगों से सराबोर हो जाता है। जल कैसे भरूं जमुना गहरी जैसे गीत पहाड़ की फिजा में गूंजने लगते हैं।

बेहद खास होती है कुमाऊं की होली
कुमाऊं की होली ना केवल उत्तराखंड में बल्कि देश-दुनिया में भी खासी मशहूर है। जहां एक ओर कुमाऊं में खड़ी होली होती है तो वहीं बैठकी होली का भी आयोजन किया जा ता है।

देशभर में प्रसिद्ध है कुमाऊं की खड़ी होली
चीर बांधने के साथ ही कुमाऊं में खड़ी होली की शुरूआत हो गई है। माना जाता है कि चीर बंधन की परम्परा बृज की होली से पहाड़ों में आई है। कुमाऊं में होल्यारों ने घर-घर जाकर खड़ी होली गायन शुरू कर दिया है। होल्यार होली के गीत गाने वाले पुरूषों को कहा जाता है।

