बांग्लादेश में जारी सकंट के बीच सेना के शीर्ष रैंक में फेरबदल किया गया है। मेजर जनरल जियाउल अहसन को हटा दिया गया है। वहीं लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद सैफुल आलम का काम विदेश मंत्रालय सौंपा गया है। लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद मोजिबुर रहमान को जीओसी सेना प्रशिक्षण और सिद्धांत कमान, लेफ्टिनेंट जनरल अहमद तबरेज शम्स चौधरी को सेना के क्वार्टरमास्टर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल मिजानुर रहमान शमीम को सेना के जनरल स्टाफ के रुप में नियुक्त किया गया है।
लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद शाहीनुल हक को कमांडेंट एनडीसी और मेजर जनरल एएसएम रिदवानुर रहमान को एनटीएमसी के महानिदेशक के रुप में नियुक्त किया गया है। इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस डायरेक्टोरेट ने मंगलवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में यह जानकारी दी है। बता दें कि सेना में बड़ा फेरबदल ऐसे वक्त में हुआ है जब देश मुश्किल वक्त से गुजर रहा है। बीते दिन ही बांग्लादेश सेना के प्रमुख ने बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बनाने का ऐलान किया था। बीते दिन ही बांग्लादेश सेना के प्रमुख ने बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बनाने का ऐलान किया था।
क्यों हुआ आंदोलन?
प्रदर्शनकारी छात्र विवादित आरक्षण प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं। बता दें कि बांग्लादेश में आरक्षण व्यवस्था के तहत 30 प्रतिशत आरक्षण उन लोगों के परिजनों और नाते-रिश्तेदारों को मिलारहा है , जिन्होंने बांग्लादेश की आजादी के लिए और रजाकारों और पाकिस्तान की सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। वहीं 10 प्रतिशत आरक्षण पिछड़े जिलों, 10 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं और 5 प्रतिशत धार्मिक अल्पसंख्यकों और एक प्रतिशत आरक्षण दिव्यांगों के लिए है। इस तरह बांग्लादेश में कुल 56 प्रतिशत आरक्षण है। इसी आरक्षण खासकर स्वतंत्रता सेनानियों के सदस्यों के परिजनों को मिले आरक्षण के खिलाफ लोगों में गुस्सा देखा जा रहा है। इसी के विरोध में बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। इस विरोध प्रदर्शन के बीच शेख हसीना के एक बयान ने विरोध की चिंगारी को और भड़काने का काम किया। ये चिंगारी रजाकारों को लेकर भड़की।
शेख हसीना के किस बयान से भड़की हिंसा?
दरअसल आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान शेख हसीना अपने एक बयान में जारी हिंसक प्रदर्शनों पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि ‘बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले लोगों के परिजनों को आरक्षण नहीं मिलेगा तो क्या रजाकार के पोते-पोतियों को आरक्षण का लाभ मिलेगा?’ शेख हसीना ने ये भी कहा कि ‘जो लोग आजादी की लड़ाई लड़ने वाले लोगों या उनके रिश्तेदारों को मिलने वाले आरक्षण का विरोध कर रहे हैं, वो रजाकार हैं।’इसी बयान ने पूरे बांग्लादेश को हिंसा की आग में झोंक दिया। शेख हसीना के इस बयान से लोग इतना नाराज हो गए कि विरोध प्रदर्शन के दौरान ‘मैं कौन, तुम कौन, रजाकार…रजाकार’ जैसे नारे लगने लगे। लेकिन ये रजाकार कौन है जिसे लेकर पूरा बांग्लादेश ही जल उठा और शेख हसीना को अपने मुल्क से भागना पड़ा।
कौन है रजाकार?
बात साल 1971 की जब बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई चल रही थी तो तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में रजाकार नाम की एक क्रूर सेना पाकिस्तान द्वारा गठित की गई थी। रजाकार शब्द का अर्थ हिंदी में ‘सहायक’ होता है। रजाकार पाकिस्तान समर्थक थे और पाकिस्तान की सेना के साथ रजाकारों ने विद्रोह को दबाने की कोशिश की थी। रजाकारों ने पाकिस्तानी सेना के जासूसों के तौर पर भी काम किया। इस दौरान रजाकारों ने बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान बांग्लादेश के नागरिकों पर खूब जुल्म किए। यही वजह है कि बांग्लादेश में रजाकार को अपमानजनक शब्द माना जाता था और बांग्लादेश में देशद्रोही और हिंसक प्रवृत्ति के लोगों के लिए रजाकार शब्द का इस्तेमाल कर उन्हें अपमानित किया जाता था।