देहरादून: हरीश रावत सरकार को घेरने की बीजेपी की सारी कोशिशें उत्तराखंड विधानसभा में धराशायी होती दिखीं, सियासत का बूढ़ा शेर चुप बैठा रहा और सदन में हंगामा बरपता रहा। न जाने क्यों लेकिन बार बार ये लगा कि जिस शख्स के हाथों में बीजेपी विधानमंडल दल की कमान सौंपी गई वो अजट भट्ट, अपनी सियासी रणनीति में भटक गए। अजय भट्ट, भाजपा के सिपहसालार, सदन में नेता प्रतिपक्ष और विपक्ष की आवाज, कोशिश तो बहुत की लेकिन भट्ट जी की एक भी जुगत काम न आई, सियासत में पचास साल का कैरियर पूरा कर चुके हरीश रावत मुस्कुराते रहे और अजय भट्ट के हथियारों को एक के बाद एक बेकार होते देखते रहे, न बीजेपी के लिहाज से बहुत कुछ बदला और न अजय भट्ट के लिहाज से, 18 मार्च से लगायत 21 जुलाई तक कहानी वहीं की वहीं नजर आई, अजय भट्ट लाख दलीलें देते रहें, किताबों के पन्ने दिखाते रहे, नियमों को पढ़ पढ़ कर सुनाते रहे, और भाजपा के विधायक अजय भट्ट पर हर बार अपना दांव लगाते रहे, लेकिन हाय री किस्मत, अजय भट्ट की पीठ पर उम्मीदों का ऐसा बोझ पड़ा कि हरीश रावत के सामने भट्ट जी चारों खाने चित्त। सत्ता की चाह में बीजेपी ने अजट भट्ट को जितने हथियार हाथ में दिए वो एक-एक कर हरीश रावत के सामने हथियार डाल गए। तो फिर ये क्यों न मान लिया जाए कि जिस अजय भट्ट की निगहबानी में बीजेपी उत्तराखंड में विजय करने निकली थी वो भट्ट जी ही भटक गए। अजय भट्ट की अगुवाई में चले भाजपा के विधायकों ने जितने चक्कर पिछले कुछ महीनों में राजभवन के लगा लिए उतने तो शायद वो अपने पूरे कार्यकाल में भी न लगाते, शायद बीजेपी के विधायक भी ये सोचते होंगे कि जाना था चीन और पहुंच गए जापान, कहां तक तो सपना था कि सचिवालय में बैठे सरकार चलाएंगे हालात ये हुए कि रोज राजभवन के चक्करों में उलझे पड़ें हैं, क्या कहिए जब, भट्ट जी ही भटक गए तो मंजिल मिले भी तो कैसे। यही सब वजह की पार्टी आलाकमान अजय भट्ट के नेतृत्तव में उत्तराखंड में चुनाव लड़ने से गुरेज करता नजर आ रहा है।