आज देश अपना 77th Independence Day मना रहा है। हम सभी जानते हैं कि महात्मा गांधी ने आज से 77 साल पहले देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। पर क्या आप जानते हैं जिस महात्मा गांधी से अंग्रेज डरते थे वो खुद कस्तूरबा गांधी से ऊंची आवाज में बात नहीं कर सकते थे। कस्तूरबा गांधी,जो कि महात्मा गांधी की पत्नी होने के साथ- साथ एक समाज सेविका, कड़क स्वभाव की महिला, अनुशासन प्रिय और आजादी की लड़ाई में अपने पति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाली स्वतंत्रता सेनानी रही हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका को धूमिल नहीं किया जा सकता। आज हम आपको महात्मा गांधी की जीवनसंगिनी Kasturba Gandhi Biography in hindi बारे में बताने जा रहे हैं जिनका जीवन अपने आप में मिसाल है, उन्होनें जो लौ जलाई उससे सब राह पाते रहे।
Kasturba Gandhi Biography in hindi
कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल 1869 में काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था। कस्तूरबा मोहनदास से छह महीने बड़ी थीं। 13 साल की उम्र में कस्तूरबा गांधी की शादी मोहनदास यानि महात्मा गांधी से करा दी गई। कस्तूरबा के गंभीर और स्थिर स्वभाल के चलते उन्हें सभी बा कहकर पुकारते थे। कस्तूरबा की हिम्मत और प्रोत्साहन एक पूरी मिसाल थी। वह हर कदम पर महात्मा गांधी के लिए एक हौसला बनीं।
Satyagraha Andolan में भाग लेती रही कस्तूरबा
साल 1904 में उन्होंने डरबन के नज़दीक फीनिक्स सेटेलमेंट स्थापित करने में मदद की थी। 1913 में दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के साथ गलत व्यवहार के खिलाफ होने वाले प्रदर्शन में कस्तूरबा ने हिस्सा लिया जिसके लिए 23 सितंबर 1913 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें तीन महीने के कड़े परिश्रम की सजा सुनाई गई थी। जेल में रहते हुए उन्होंने अशिक्षित महिलाओं को पढ़ने और लिखने के लिए प्रेरित किया। कस्तूरबा और गांधी ने अपने परिवार के साथ साल 1914 में भारत लौटने के लिए दक्षिण अफ्रीका छोड़ा। 9 जनवरी 1915 में भारत वापिस आने से पहले इंग्लैंड की यात्रा की। भारत लौटने के बाद उनकी सामाजिक आंदोलनों में सक्रियता बहुत ज्यादा बढ़ गई। वह लगातार सत्याग्रह में भाग ले रही थीं।
आजादी की लड़ाई में कई बार जाना पड़ा जेल
1917 में जब गांधी चंपारण में नील के किसानों के साथ काम कर रहे थे उसी समय कस्तूरबा महिलाओं के कल्याण के लिए अनुशासन, स्वास्थ्य, सफाई और लिखाई-पढ़ाई के लिए काम कर रही थी। साल 1922 में खराब स्वास्थ्य होने के बावजूद उन्होंने गुजरात के बोरसाड Satyagraha Andolan में भाग लिया। हालांकि, उन्होंने 1930 के ‘नमक आंदोलन’ में हिस्सा नहीं लिया था। इससे अलग वह लगातार आंदोलन और विरोध- प्रदर्शनों से जुड़ी रही। इसी वजह से उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया और जेल में डाला गया। 1939 में राजकोट की महिलाओं ने ब्रिट्रिश शासन के खिलाफ आंदोलन किया। उनको गिरफ्तार कर एक महीने का एकांत कारावास की सजा मिली।
खादी का चेहरा बनी Kasturba Gandhi
कस्तूरबा ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन,’ ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ और अन्य आंदोलनों मे फ्रंट-लाइनर थीं। जब गांधी को हिरासत में लिया गया तो वह अक्सर आंदोलनों में नेतृत्व की भूमिका में आ जाती थीं। उन्होंने एक बार ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में बड़ी भीड़ को संबोधित भी किया था। उन्होंने लंबे समय तक साबरमती आश्रम को चलाया। कस्तूरबा पैदल या बैलगाड़ी से गांव-गांव जाकर लोगों को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए सजग करती थीं। वह दूसरी महिलाओं को आंदोलन में शामिल होने के लिए कहती थीं। उन्होंने महिलाओं को शराब की दुकान के सामने धरना देने, कताई करने और खादी पहनने का आग्रह किया। कस्तूरबा उस समय देश में खादी का चेहरा बनीं। वह स्वदेशी श्रमिकों को उनके देश और मातृभूमि के लिए उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया करती थीं।
गहने, अच्छा खाना और अपने धार्मिक लाभ त्यागे
Kasturba Gandhi अपने पूरे जीवन में महात्मा गांधी के साथ खड़ी रहीं। उन्होंने गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया। उन्होंने अपने घर के दरवाज़े पूरे देश और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए खोल दिए थे। जब गांधी जेल में थे और उन्होंने उपवास रखा। कस्तूरबा उन चीजों को छोड़ने से नहीं हिचकी जो उन्हें बहुत पसंद थीं। उन्होंने अपने गहने, अच्छा खाना और अपने धार्मिक लाभ तक त्याग दिए थे। ‘भारत छोड़ाे आंदोलन’ में हिस्सा लेने के लिए अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ उन्हें भी गिरफ्तार किया गया। उन्हें पुणे के आग़ा ख़ान पैलेस में कैद किया गया। उस समय तक उनकी सेहत पूरी तरह खराब हो गई थी। कैद में बंद कस्तूरबा गांधी को जब लगा की उनका अंतिम समय नजदीक है उन्होंने उसी कैंप में बंद महात्मा गांधी से मिलने की इच्छा जताई।
1944 में महात्मा गांधी की गोद मे ली आखिरी सांस
22 फरवरी 1944 में उन्होंने महात्मा गांधी की गोद में आखिरी सांस ली और इस दुनिया को अलविदा कह दिया। अपनी मौत से पहले उन्होंने कहा था, “मेरी मौत पर शोक मत मनाना। यह आनंद का अवसर होना चाहिए।” 23 फरवरी 1944 को आगा ख़ान पैलेस में उनका अंतिम संस्कार किया गया था। महात्मा गांधी चिंता की जब तक आग नहीं बुझी थी तब तक वहीं बैठे रहे थे। कुछ समय बाद कस्तूरबा गांधी को श्रद्धाजंलि देते हुए गांधी ने कहा था, “हर स्थिति में वह मेरे से आगे खड़ी थी। उसने मुझे जगाए रखने और मेरी इच्छाएं पूरी करने में मेरी मदद की। वह मेरे सभी राजनीतिक झगड़ों में मेरे साथ खड़ी रहीं और कभी भी कदम उठाने में नहीं हिचकी। हालांकि, आज के शब्दों के अनुसार वह अशिक्षित थी लेकिन मेरे अनुसार वह सच्ची शिक्षा की आदर्श थी।”
तो ऐसी थी Kasturba Gandhi, जो एक साधारण महिला था लेकिन जब बात देश को आजाद कराने की आई तो उन्होनें अपने कदम पीछे नहीं किए और लगातार बुलंद आवाज में शेरनी बनकर देश की लड़ाई लड़ते रही। राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी की धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, सामाजिक उत्थान में बहुमूल्य योगदान दिया जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।
kasturba gandhi ki samadhi kahan hai?
आगा खान पैलेस पुणे के येरावाड़ा में स्थित एक एतिहासिक भवन है। इसे 1892 में सुल्तान मुहम्मद शाह आगा खान द्वितीय ने बनवाया था। इस भवन में महात्मा गाँधी और उनके अन्य सहयोगी को बंदी बना कर रखा गया था कस्तूरबा गाँधी का निधन भी इसी भवन में हुआ था और यही kasturba gandhi ki samadhi भी स्थित है, अब यह भवन एक संग्राहलय है।