देहरादून : उत्तराखंड के हर घर से कोई ना कोई सेना में है। देश की रक्षा में जुटे सेना के विभिन्न अंगों में देवभूमि और वीरभूमि उत्तराखंड के वीर अपने युद्ध कौशल और अदम्य साहस का लोहा मनवा चुके हैं। विश्व युद्धों से लेकर आजादी की लड़ाई, भारत-पाकिस्तान, चीन-भारत युद्ध हो या फिर कारगिल की लड़ाई। जंग के हर मैदान में देवभूमि के रणबांकुरों ने अपने अदम्य साहस से दुश्मनों के दांत खट्टे किए हैं और आज भी कर रहे हैं। हमारे वीर सैनिकों ने हमेशा से ही अपनी जन्मभूमि का गौरव बढ़ाया है। अकेले कारगिल युद्ध में ही हमारे 75 वीरों ने अपने शहादत दी थी। देश पर कुर्बान होने वाले जांबाजों में उत्तराखंड के वीरों का कोई सानी नहीं हैं। जब-जब देश की आन-बान और शान पर कोई संकट आया वीरभूमि के जाबांजों ने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। देश और दुनिया में जब भी जवानों की शहादत और वीरता की बात आती है। देवभूमि उत्तराखंड के वीर जवानों के साहस और वीरता के चर्चे हर जुबां पर होते हैं। यही वजह है कि जब भी जवानों की शहादत को याद किया जाता है तो उत्तराखंड के वीरों के अदम्य साहस के किस्से हर जुबां पर होते हैं। 1999 के करगिल युद्ध करगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जवान ने सर्वोच्च बलिदान दिया था।
दुश्मन के सामने सीना ताने खड़े रहे
आजादी के बाद से अब तक राज्य के डेढ़ हजार से अधिक वीर जवान देश रक्षा करते हुए अपने प्राणों को बलिदान दे चुके हैं। जब भी सीमाओं पर तनाव होता है। उत्तराखंड के हर घर की निगाहें भी सीमा की ओर होती हैं। जब-जब सीमा पर दुश्मन ने हमारी सीमाओं में घुसने का प्रयास किया। देवभूमि के जवान हमेशा से दुश्मन के सामने सीना ताने खड़े रहे। देश पर कुर्बान होने वाले जांबाजों में उत्तराखंड के वीरों का कोई सानी नहीं हैं।
75 जवानों में 75 जवानों की शहादत
जब-जब देश की आन-बान पर कोई संकट आया तब तब उत्तराखंड के जाबांजों ने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। जब भी जवानों की शहादत को याद किया जाता है तो उत्तराखंड के वीरों के अदम्य साहस के किस्से हर जुबां पर होते हैं। बात करें वर्ष 1999 के करगिल युद्ध की तो यहां भी उत्तराखंड के जाबांज सबसे आगे खड़े मिले। करगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जवानों ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी। इनमें 37 जवान ऐसे थे जिन्हें युद्ध के बाद उनकी बहादुरी के लिए पुरस्कार भी मिला था।
उत्तराखंड के योद्धाओं की शहादत
आजादी से पहले हो या आजादी के बाद हुए युद्ध। देश के लिए शहादत देना उत्तराखंड के शूरवीरों की परंपरा रही है। आजादी के बाद से अब तक डेढ़ हजार से अधिक सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी। करगिल युद्ध में भी उत्तराखंड के वीरों ने हर मोर्चे पर अपने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे। रक्षा मामलों के जानकार बताते हैं कि युद्ध लड़ने में ही नहीं, बल्कि युद्ध की रणनीति तय करने और रणभूमि फतह करने में भी इनका अहम योगदान रहा है।
डेढ़ हजार से अधिक सैनिक न्यौछावर कर चुके प्राण
आजादी के बाद से अब तक राज्य के डेढ़ हजार से अधिक सैनिक देश रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर चुके हैं। किसी मां ने अपना बेटा खोया तो किसी पत्नी ने अपना सुहाग और कई घर उजड़ गये। फिर भी न ही देशभक्ति का जज्बा कम हुआ और न ही दुश्मन को उखाड़ फेंकने का दम। वर्तमान में भी राज्य के हजारों लाल सरहद की निगह बानी के लिए मुस्तैद हैं और देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दे रहे हैं।
किस जनपद से कितने शहीद
देहरादून 28, पौड़ी 13, टिहरी 8, नैनीताल 5, चमोली 5, अल्मोड़ा 4, पिथौरागढ़ 4, रुद्रप्रयाग 3, बागेश्वर 2, ऊधमसिंह नगर 2 और उत्तरकाशी जिजे के भी एक जवान ने अपनी शहादत दी थी।
करगिल युद्ध और उत्तराखंड
महावीर चक्र विजेता: मेजर विवेक गुप्ता, मेजर राजेश अधिकारी, वीरचक्र विजेता: कश्मीर सिंह, बृजमोहन सिंह, अनुसूया प्रसाद, कुलदीप सिंह, एके सिन्हा, खुशीमन गुरुंग, शशिभूषण घिल्डियाल, रुपेश प्रधान और राजेश शाह। सेना मेडल: मोहन सिंह, टीबी क्षेत्री, हरि बहादुर, नरपाल सिंह, देवेंद्र प्रसाद, जगत सिंह, सुरमान सिंह, डबल सिंह, चंदन सिंह, मोहन सिंह, किशन सिंह, शिव सिंह, सुरेंद्र सिंह और संजय। मैंस इन डिस्पैच: राम सिंह, हरिसिंह थापा, देवेंद्र सिंह, विक्रम सिंह, मान सिंह, मंगत सिंह, बलवंत सिंह, अमित डबराल, प्रवीण कश्यप, अर्जुन सेन और अनिल कुमार।