आशीष तिवारी। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में एक साथ ही विधानसभा चुनाव हुए और दोनों ही जगहों पर एक ही पार्टी की सरकार लगभग एक ही वक्त में बनी। उत्तर प्रदेश की कमान योगी आदित्यनाथ को दी गई तो उत्तराखंड की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत के हाथों में आई। सत्ता संभालने के साथ ही दोनों मुख्यमंत्रियों के कामकाज जनता के सामने आने लगे। कुछ ही दिनों में योगी ने मीडिया में खासी जगह बना ली जबकि त्रिवेंद्र रावत उनसे कही पीछे नजर आने लगे। ऐसे में अब ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या राज्य की जनता योगी और त्रिवेंद्र की तुलना करने लगी है।
हालांकि दोनों ही सूबों की शासन व्यवस्था में जमीन आसमान का अंतर है लेकिन बावजूद इसके लोगों को लगता है कि योगी अगर इतना सबकुछ करता हुआ दिख रहें हैं तो त्रिवेंद्र क्यों नहीं। उत्तराखंड में आजकल लोग अक्सर चाक चौराहों पर योगी की तारीफ करते हुए चाय की चुस्कियां लेना शुरु करते हैं और त्रिवेंद्र के ढीले कामकाज पर हैरानी जताते हुए चाय का पेमेंट अपनी जेब से निकालते हैं।
योगी और टीएसआर की तुलना के पीछे दोनों का कामकाज ही एक अहम वजह है। योगी ने सरकार बनाते ही एंटी रोमियो स्कॉवड बना डाला और किसानों का कर्ज माफ कर दिया। वहीं टीएसआर सरकार बनते ही एनएच घोटाले में सीबीआई जांच का ऐलान तो हुआ लेकिन ये चर्चाओं में नहीं आ पाया। आम आदमी से सीधा सरोकार न होना इसकी एक वजह हो सकती है। वहीं शराब बंदी और खनन जैसे मसलों पर त्रिवेंद्र सरकार का रवैया भी लोगों को ढीला सा लगा। उत्तराखंड की जनता को सरकार कभी असमंजस में दिखी तो कभी जनता की इच्छा के विरुद्ध जाते दिखी।
यूपी और उत्तराखंड का इतिहास, भूगोल सब एक दूसरे से अलग है। यहां तक की जन प्रतिनिधियों के कामकाज का तरीका भी एक दूसरे से मेल नहीं खाता है। यूपी की अपनी समस्याएं हैं तो उत्तराखंड की अपनी। यूपी एक बड़ा राज्य है और मीडिया में उसका स्पेस खासा है। हिंदी पट्टी के न्यूज चैनलों और अखबारों के कंटेंट का बड़ा हिस्सा यूपी से ही आता है। ऐसे में यूपी और उत्तराखंड की तुलना करना बहुत हद तक सही नहीं होगा।
वैसे इस सबके बीच अंबेडकर जयंती के मौके पर नागपुर में डिजीधन योजना के तहत 25 लाख रुपए जीतने वाले भरत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपना पुरुस्कार ले रहे थे। इसी बीच नरेंद्र मोदी ने उनसे पूछा कि वो कहां से आए हैं, जब भरत ने बताया कि वो देहरादून से आए हैं तो पीएम मोदी ने कहा, वेरी गुड।