हरीश रावत को किच्छा को बना दिया हॉट सीट
ब्यूरो- 2017 के चुनाव मे किच्छा से मुख्यमंत्री हरीश रावत उतरे हैं लिहाजा किच्छा हॉट सीट बन गई है। इस बार भाजपा उम्मीदवार राजेश शुक्ला को कांग्रेस के हैवीवेट कंडीडेट का मुकाबला करना है। लिहाजा पाने की स्थिति में राजेश शुक्ला ही हैं. हारे तो मलाल नहीं और जीते तो भाजपा में उनका कद हेवीवेट हो जाएगा। उधर कांग्रेस से बागी होकर शिल्पी अरोड़ा ने भी किच्छा से ताल ठोक रखी है। हालांकि अभी एक फरवरी नाम वापसी की तारीख है।
रुद्रपुर- किच्छा (61) 2002 की चुनावी तस्वीर
उम्मीदवार का नाम | दल का नाम | प्राप्त मत |
तिलक राज बेहड़ | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | 21614 |
राजेश कुमार | समाजवादी पार्टी | 14576 |
विजय कुमार | भारतीय जनता पार्टी | 14522 |
कांग्रेस उम्मीदवार तिलक राज बेहड़ 7038 वोट से जीते, 2002 मे भाजपा तीसरे स्थान पर रही। सपा उम्मीदवार के दूसरे स्थान पर रहने से साबित हुआ कि किच्छा के एक बड़े तबके ने पार्टी के बजाए उम्मीदवार को प्राथमिकता दी।
रुद्रपुर-किच्छा (61) सीट पर 2007 की चुनावी तस्वीर
उम्मीदवार का नाम | दल का नाम | प्राप्त मत | नतीजा |
तिलक राज बेहड़ | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | 46800 | 6332 वोट से जीते |
राजेश शुक्ला | भारतीय जनता पार्टी | 40568 | हारे |
तस्सवुर खान | बहुजन समाज पार्टी | 23126 | तीसरे स्थान पर रहे |
इस चुनाव मे सपा के नागेश त्रिपाठी एक हजार वोट भी नहीं बटोर पाए और 947 वोट लेकर पांचवे स्थान पर रहे।
किच्छा (67) सीट पर 2012 की चुनावी स्थति
उम्मीदवार का नाम | दल का नाम | प्राप्त मत | नतीजा |
राजेश शुक्ला | भारतीय जनता पार्टी | 33388 | जीते |
शरवरयार खान | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | 25162 | 8226 मतों से हारे |
राजेश प्रताप सिंह | बहुजन समाज पार्टी | 8072 |
2012 के विधानसभा चुनाव नए परिसीमन के आधार पर हुए। 2002 और 2007 की रुद्रपुर किच्छा (61) 2012 के चुनाव मे सिर्फ किच्छा (67) रह गई। रुद्रपुर अलग सीट बन गई। भाजपा ने फिर से राजेश शुक्ला को किच्छा का टिकट थमाया। जबकि कांग्रेस के पुराने उम्मीदवार तिलकराज बेहड़ रुद्रपुर चले गए। शुक्ला से मुकाबले के लिए कांग्रेस ने शरवरयार खान को किच्छा से उतारा। नतीजा इस बार भाजपा के पक्ष में रहा। राजेश शुक्ला ने कांग्रेस उम्मीदवार को 8226 मतों के अंतर से हरा दिया। बसपा के मतों में भी 2007 के मुकाबले गिरावट दर्ज की गई । सपा उम्मीदवार इकबाल कुरैशी तो 800 वोटों का आंकड़ा भी न छू सके।