चमोली जिले की उर्गम घाटी में एक ऐसा मंदिर है साल में सिर्फ एक दिन खुलता है। जी हां बंशीनारायण मंदिर के कपाट साल में एक बार रक्षाबंधन के दिन खुलते हैं। रक्षाबंधन पर महिलाएं भगवान विष्णु को राखी बांधती हैं। आज सुबह विधि-विधानपूर्वक बंशीनारायण मंदिर के कपाट खोले गए।
एक दिन के लिए खुले बंशीनारायण मंदिर के कपाट
रक्षबंधन पर हर साल एक दिन के लिए बंशीनारायण मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। ये परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। रक्षाबंधन पर मंदिर में विशेष पूजाएं होती हैं। रक्षाबंधन के दिन बंशीनारायण मंदिर में कलगोठ गांव के ग्रामीण भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते हैं। इस बार मां नंदा के पुजारी हरीश रावत मंदिर में सभी पूजाएं करेंगे।
रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं मंदिर के कपाट
बंशीनारायण मंदिर को वंशीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर के कपाट सिर्फ एक दिन रक्षाबंधन के दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक इस मंदिर के कपाट खुलते हैं। इसके बाद अगले एक साल के लिए फिर से मंदिर बंद हो जाता है। रक्षाबंधन के दिन मंदिर के खुलते ही कुंवारी कन्याएं और विवाहित महिलाएं भगवान बंशीनारायण को राखी बांधने जाती हैं।
चमोली में स्थित है ये मंदिर
बंशीनारायण मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले की उर्गम घाटी में कल्पेश्वर महादेव मंदिर से लगभग 12 किलोमीटर और देवग्राम से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। वंशीनारायण मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित 8वीं शताब्दी का मंदिर है। मंदिर उर्गम गांव के अंतिम गांव बंसा से 10 किमी आगे स्थित है। इसलिए मंदिर के आसपास कोई मानव बस्तियां नहीं हैं।
मंदिर से जुड़ी रोचक कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर दानवीर राजा बलि का घमंड चूर किया था। बलि का घमंड चूर होने के बाद उन्होंने पाताल लोक में जाकर भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की थी। बलि की कठोर तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए थे। जिसके बाद राजा बलि ने भगवान नारायण से प्रार्थना की थी कि वो भी मेरे सामने ही रहे। ऐसे में भगवान विष्णु पाताल लोक में बलि के द्वारपाल बन गए थे।
लंबे समय तक जब भगवान विष्णु वापस नहीं लौटे तो मां लक्ष्मी भी पाताल लोक आ गई। माता लक्ष्मी ने पाताल लोक में राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध कर प्रार्थना की कि वो भगवान विष्णु को जाने दें। इसके बाद राजा बलि ने अपनी बहन की बात मान कर भगवान विष्णु को वचन से मुक्त कर दिया। मान्यता है कि पाताल लोक से भगवान विष्णु इसी क्षेत्र में प्रकट हुए थे।