चमोली में बर्फ से ढके नर नारायण पर्वतों के बीच उफान मारती अलकनन्दा नदी के तट पर बसा है श्री हरी विष्णु का पावन धाम बदरीनाथ धाम को भू वैकुंठ भी कहा जाता है। यहां भगवान विष्णु बद्रीनारायण के रुप में विराजते हैं।
स्कंदपुराण के मुताबिक बद्रीनाथ को चारों युगों में अलग-अलग नामों से जाना जाता रहा है। जैसे सतयुग में मुक्तिप्रदा, त्रेतायुग में योगसिद्धा, द्वापरयुग में विशाला और कलियुग में बद्रीकाश्रम या फिर बद्रीनाथ।बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु ध्यान मुद्रा में विराजमान हैं।
माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु 6 महीने निद्रा में रहते हैं और 6 महीने जागते हैं। यही वजह है की बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ यहां भगवान विष्णु की पूजा बस 6 महीने तक की जाती है। इसके बाद शीतकाल के 6 महीने उनको जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में पूजा जाता है।
बद्रीनाथ से जुड़ी पौराणिक कथा
कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु बद्रीनाथ में घोर तपस्या में लीन थे। तभी यहां हिमपात शुरु हो गया। जिसे देख कर माता लक्ष्मी विचलित हो गई और भगवान विष्णु की तपस्या में कोई बाधा उत्पन्न ना हो ये सोचकर बेर, जिसे बद्री भी कहते हैं, उसके वृक्ष में परिवर्तित हो गई और कठोर मौसम से बचाने के लिए उन्हें अपनी शाखाओं से ढ़क लिया।
Tapta Kund Badrinath से निकलता है औषधि युक्त गर्म पानी
बद्रीनाथ में एक तप्त कुण्ड है। जिसे गर्म चश्मा भी कहा जाता है। इसका पानी सल्फर युक्त है। इस पानी को वर्षों से औषधि का दर्जा दिया जाता रहा है। इस चश्मे का तापमान सालभर लगभग 55 डिग्री सेल्सियस रहता है, जबकि बाहरी तापमान 17 डिग्री सेल्सियस के नीचे रहता है।
कब हुई थी बदरीनाथ मंदिर की स्थापना
बदरीनाथ मन्दिर की उत्पत्ति के विषय में अनेक मत प्रचलित हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार यह मन्दिर आठवीं शताब्दी तक एक बौद्ध मठ था, जिसे आदिगुरू शंकराचार्य ने एक हिन्दू मन्दिर में परिवर्तित कर दिया। यह भी माना जाता है कि बद्रीनाथ की मूर्ति देवताओं ने स्थापित की थी।
जब बौद्धों का प्रभाव हुआ तो उन्होंने इसे अलकनन्दा में फेंक दिया। जिसके बाद शंकराचार्य ने इस शालीग्राम से बनी मूर्ति की खोज कर तप्त कुंड के पास स्थित एक गुफा में स्थापित कर दिया और तीसरी बार रामानुजाचार्य ने इसे तप्तकुण्ड से निकालकर दोबारा स्थापित किया।
बदरीनाथ धाम के कपाट कब खुलेंगे? ( badrinath dham opening date 2024 )
बदरीनाथ धाम के कपाट (badrinath dham opening date 2024) श्रद्धालुओं के लिए 12 मई को सुबह छह बजे ब्रह्ममुहूर्त पर खुलने जा रहे हैं। उत्तराखंड सरकार की ओर से देश-विदेश से बद्रीनाथ यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई है।
Badrinath Darshan के लिए टोकन सिस्टम शुरू
बदरीनाथ धाम आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए इस बार बदरीनाथ धाम में दर्शन के लिए टोकन व्यवस्था शुरू की गई है। टोकन में दिए गए समय पर ही श्रद्धालु मंदिर में जाकर दर्शन कर सकेंगे।
कैसे मिलगा बदरीनाथ मंदिर के लिए टोकन ? ( How to get token for Badrinath temple )
- श्रद्धालुओं को पर्यटन विभाग की ओर से बनाए गए रजिस्ट्रेशन काउंटर में अपना रजिस्ट्रेशन पत्र दिखाना होगा।
- इसके बाद उनका रजिस्ट्रेशन नंबर क्यूआर कोड से स्कैन करने के बाद तीर्थयात्रियों को एक टोकन दिया जाएगा। जिसमें बदरीनाथ दर्शन का समय अंकित होगा।
- तीर्थयात्री उसी निर्धारित समय पर मंदिर में प्रवेश कर दर्शन कर सकते हैं। जिससे उन्हें दर्शन के लिए पहले की तरह लाइन में नहीं लगना पडेगा।
बद्रीनाथ से केदारनाथ की दूरी (badrinath to kedarnath distance )
केदारनाथ से बद्रीनाथ की दूरी 245 किलोमीटर है। बता दें कि केदारनाथ से गौरीकुंड के बीच 18 किमी का ट्रैक शामिल है। गौरीकुंड से पांच किमी की दूरी तय कर आप सोनप्रयाग पहुंचेंगे। यहां पर वाहनों की पार्किंग होती है। केदारनाथ से बद्रीनाथ के बीच की दूरी तय करने में आपको सात से आठ घंटे का समय लग जाता है।