हमेशा की तरह सबको चौंकाते हुए एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रपति पद के लिए ऐसे चेहरे को आगे कर दिया जिसका अंदाजा शायद ही किसी ने लगाया हो। बिहार के राज्यपाल और कभी भाजपा के प्रमुख दलित चेहरे रहे रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति पद के लिए दोनों नेताओं की पहली पसंद बने हैं।
पहला सवाल तो ये ही है कि आखिर पार्टी ने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आड़वाणी, मुरली मनोहर जोशी, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन सहित तमाम बड़े चेहरों पर कोविंद को तरजीह क्यों दी? तो चलिए आपको बताते हैं उन खास वजहों के बारे में जिसकी वजह से मोदी शाह की जोड़ी ने उन्हें इस दौड़ में सबसे आगे रखा।
दलित चेहरे को बढ़ावा देना
दलित समुदाय से होना कोविंद की उम्मीदवारी की बड़ी वजह बना। लोकसभा और फिर यूपी के विधानसभा चुनावों में जिस तरह से दलितों ने भाजपा को समर्थन किया उसको देखते हुए पार्टी किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहती है। कोविंद के सहारे पार्टी सबका साथ सबका विकास के नारे को भी आगे बढ़ा सकेगी।
विरोध करने वालों पर लगेगा दलित विरोधी होने का ठप्पा
रामनाथ कोविंद का नाम घोषित करने का सबसे बड़ा लाभ भाजपा को यह भी हो सकता है कि उनका विरोध करना दूसरे दलों को भारी पड़ सकता है। दलित चेहरा होने के कारण विरोध करने वालों पर दलित विरोधी होने का ठप्पा लग सकता है। ऐसे में बेवजह कोई भी इस दल इस तरह का खामियाजा नहीं भुगतना चाहेगा।
लंबा राजनीतिक अनुभव
राजनीतिक अनुभव के मामले में भी कोविंद का पक्ष काफी मजबूत है। वह 12 साल तक राज्यसभा के सांसद रहे और भाजपा के दलित मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं। कुछ समय के लिए पार्टी के प्रवक्ता भी रहे और अब पिछले दो सालों से बिहार के राज्यपाल हैं।
हाइकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में वकालत, कानून के अच्छे जानकार
कानपुर के रहने वाले रामनाथ कोविंद कानून के भी अच्छे जानकार हैं। कानपुर यूनिवर्सिटी से बीकॉम और एलएलबी की पढ़ाई करने वाले कोविंद ने दिल्ली हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 16 साल तक वकालत की है।
समर्थन जुटाना होगा आसान
रामनाथ कोविंद के चेहरे पर भाजपा के लिए दूसरे दलों से समर्थन जुटाना भी आसान होगा। इसमें उनका दलित होना काफी फायदेमंद रह सकता है। बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए अब उनके चेहरे का विरोध करना मुश्किल भरा होगा तो बिहार का राज्यपाल रहने के कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का समर्थन मिलने की उम्मीद भी की जा सकती है।
आम राय बनने की उम्मीद
रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के बाद भाजपा के लिए सबसे आसान काम होगा उनके नाम पर आमराय बनाना। पार्टी अगर आड़वाणी, जोशी या किसी अन्य बड़े नेता को अपना उम्मीदवार तय करती तो पूरी संभावना थी कि विपक्ष शायद ही उस नाम पर तैयार होता, लेकिन रामनाथ कोविंद के नाम पर शायद ही किसी को आपत्ति हो। बिहार में राज्यपाल रहने के दौरान लालू और नीतीश से उनके मधुर संबंध रहे हैं।
निर्विवादित और ईमानदार छवि
अब तक के कार्यकाल में रामनाथ कोविंद की साफ छवि रही है..उन पर अभी तक कोई भी आरोप नही लगे..वह एकदम साफ छवि के व्यक्ति है और पार्टी में तमाम पदों पर रहने के अलावा वह राज्यसभा की कई कमेटियों के सदस्य भी भी रहे हैं। राजनीति में जहां आज लोग हाईक्लास जीवन जीने के लिए पहचाने जाते हैं वहीं कोविंद आज भी साधारण जीवन जीते हैं। यहां तक की गांव का पैतृक मकान भी बारातशाला बनाने के लिए दान कर दिया।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव
दो बार राज्यसभा का सदस्य रहने के दौरान रामनाथ कोविंद ने कई बार विदेशों की यात्राएं की हैं। वह गवर्नर्स ऑफ इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के भी सदस्य रहे हैं। साल 2002 में उन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत संयुक्त राष्ट्र महासभा को भी संबोधित किया था।