देहरादून- खूबसूरत और हरे-भरे जंगलों से लकदक जिस उत्तराखंड की हरियाली को देखने देश-विदेश से सैलानी आते हैं। जिस हरियाली और कुदरती नजारों को देखकर सूबे की सरकार उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश बनाने का ख्वाब सजा रही है। जिन जंगलों के दम पर सूबे की सरकार हर बार केंद्र सरकार से ग्रीन बोनस की डिमांड करती है।
लेकिन दूसरी ओर एक तस्वीर ये भी है कि तमाम विकास योजनाओं के चलते उस हरियाली की शामत आई हुई है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन, चार धाम मार्ग परियोजना(ऑलवेदर रोड़) और पंचेश्वरबांध जैसी अन्तर्राष्ट्रीय परियोजनाओं के चलते लाखों की तादाद में दरख्तों की दुनिया उजड़नी है।
ऐसे में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है मानकों के मुताबिक हरियाली उगाने की ताकि तबाह हुई हरे-भरे दरख्तों की दुनिया फिर से राज्य में आबाद हो सके। लेकिन आपको ये जानकर अचरज होगा कि उत्तराखंड राज्य के पास इस नुकसान की भरपाई के लिए ऐसी जमीन नहीं बची है जिसमें तय मानकों के हिसाब से जंगलों को फिर से उगाया जा सके। लिहाजा खबर है कि राज्य सरकार देश के दूसरे राज्यों में जंगलों को उगाने के लिए जमीन तलाश रही है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड और नेपाल के बीच शारदा नदी (नेपाल में महाकाली) पर 40 हजार करोड़ की लागत से पंचेश्वर बांध परियोजना प्रस्तावित है। इस परियोजना में उत्तराखंड के तीन जिलों पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और चंपावत के 130 गांव प्रभावित हो रहे हैं। जबकि परियोजना की जद में उत्तराखंड क्षेत्र की 9100 हेक्टेयर ऐसी जमीन आ रही है जिसमें घना जंगल उगा हुआ है। ऐसे में तय है कि विकास की सलीब पर इन पेड़ों की बलि तय है। हालांकि अभी इसका सर्वे किया जाना बाकि है कि कितने क्षेत्रफल में पेड़ों का कटान होगा।
नियमानुसार इस परियोजना के जितने क्षेत्रफल से पेड़ कटेंगे, उतने ही क्षेत्रफल पर पेड़ उगाए भी जाने हैं। हालांकि राज्य सरकार की विकास योजनाओं के लिए सरकार को जंगल उगाने के लिए दोगुनी जमीन देनी होती है। बहरहाल पंचेश्वर परियोजना अंतर्राष्ट्रीय परियोजना है लिहाजा इसके लिए जितनी जमीन पर पेड़ कटेंगे उतनी ही जमीन पर सरकार को पेड़ भी उगाने होंगे।
बताया जा रहा है कि राज्य में पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट चारधाम मार्ग परियोजना में ही 50 हजार से अधिक पेड़ कटने हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि पंचेश्वर बांध के लिए यह आंकड़ा इससे दोगुना हो सकता है। इतनी संख्या में पेड़ों की नए पौध को उगाने के लिए काफी जमीन चाहिए।
उत्तराखंड का 71.05 फीसदी इलाका वन भूभाग है, ऐसे में प्रदेश के पास इतनी जमीन नहीं कि वह इन पेड़ों की प्रतिपूर्ति के लिए किसी जिले में जमीन उपलब्ध करा सके। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार कई प्रदेशों से भूमि उपलब्धता के संबंध में वार्ता कर रही है। अभी तक इस सिलसिले में प्रदेश सरकार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक तक से बात कर चुकी है, लेकिन कोई अंतिम फैसला नहीं हो पाया है।