रुड़की- नेशनल हाईवे 73 के निर्माण के लिए मुआवजे के दो मानक रसूलपुर के किसानों को रास नहीं आ रहे हैं। किसानों की नाराजगी पिछले दो महीने से लगातार जारी है। कभी धरना देकर तो कभी प्रदर्शन कर किसान अपनी नाराजगी जाहिर भी कर रहे हैं।
किसान लगातार ऐतराज कर सरकार को बता रहे हैं कि एक सड़क के निर्माण के लिए एक ही रुट पर स्थित दो गांवों को अलग-अलग मुआवजा कैेसे दिया जा सकता है? सलेमपुर के किसानों को राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के लिए 2427 रूपए की दर से मुआवजा दिया गया जबकि रसूलपुर के किसानों को 404 रूपए के हिसाब से।
किसान इंसाफ चाहते हैं लिहाजा हर कुर्बानी को तैयार भी हैं। राजमार्ग निर्माण को किसान तब तक के लिए टलवाना चाहते हैं जब तक उनको उनका वाजिब हक नहीं मिल जाता। प्रशासन डंडे के जोर से किसानों को खदेड़ना चाहता है लेकिन किसानों की मांग है कि राजमार्ग का काम तब तक शुरू न किया जाए जब तक मुआवजे पर फैसला नहीं हो जाता।
गौरतलब है कि एक सड़क निर्माण के लिए अधिगृहित दो गांवो की जमीन पर सरकार ने अलग-अलग मानकों के मुताबिक मुआवजा दिया है। किसानों की इसी को लेकर नाराजगी है किसानों का कहना है कि एक जैसी जमीन के लिए मुआवजे के दो पैमाने कैसे हो सकते हैं?
बता दें कि राष्ट्रीय राजमार्ग 73 मंगलौर -देहरादून बाईपास मार्ग निर्माण के लिए महकमे ने अपनी कमर कस ली है लेकिन इंसाफ की गुहार लगाते किसानों के तेवरों को देखते हुए प्रशासन के कदम ठिठक गए हैं। किसानों ने राष्ट्रीय राजमार्ग की टीम को निर्माण करने से रोक दिया। ऐसे में किसानों के विरोध को देखते हुए रुड़की की ज्वाइंट मजिस्ट्रेट निकिता खंडेलवाल ने किसानो की बात सुनी और उन्हें समझाने की कोशिश भी की। लेकिन किसान इंसाफ हुए बगैर मानने को कतई तैयार नहीं हैं।
हलांकि खंडेलवाल की माने तो किसानों का मुआवजा मामला जिलाधिकारी की कोर्ट मे लंबित है। जिस पर आने वाली 24 तारीख को सुनवाई होनी हैं। वहीं किसानो का कहना है कि जब तक फैसला नहीं हो जाता तब तक हाईवे का निर्माण नहीं होना चाहिए। वहीं ज्वाइंट मजिस्ट्रेट की माने तो मुआवजा ले चुके किसानो को अपनी जमीन एन.एच. को देनी होगी। हालांकि किसानों का कहना है कि उन्हें जमीन देने से ऐतराज नहीं है लेकिन मुआवजा से कोई समझौता नहीं होगा।