डेस्क- लगता है केंद्र सरकार उत्तराखंड पर वैसे नहीं तो ऐसे मेहरबान है। मंत्रीमंडल विस्तार में बेशक उत्तराखंड को जगह न मिली हो लेकिन विकास के प्रोजेक्ट्स पर अमल हो रहा है। पहले नीति आयोग ने सूबे के पर्यटन महकमें के कन्वेंशन हाल के 400 करोड़ रुपए वाले प्रोजेक्ट को मंजूरी दी।
अब केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भी सूबे को बड़ी सौगात दी है। मंत्रालय ने उत्तराखंड में क्रिप्सी फ्रूट (करारे फल) की फैक्ट्री लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। फैक्ट्री की स्थापना CSIR की प्रयोगशाला हिमालयन जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर लगाएगी।
तय है कि जब ये फैक्ट्री लग जाएगी तो राज्य में पैदा होने वाले पौष्टिक पहाड़ी फल ‘आडू’, ‘खुबानी’, पुलम, नाशपाती, ‘काफल’, हेंसर, किनगोड समेत सभी फल बेमौसम में भी आसानी से बाजार में मिल जाएंगे। दरअसल इस फैक्ट्री में राज्य में पैदा होने वाले फलों को करारे यानि क्रिप्सी रूप दिया जाएगा। इस तकनीक से फल सात – आठ माह तक आसानी से महफूज रहेंगे। इससे जहां फल बेमौसम मे भी बाजार की रौनक बनाए रखंगे वहीं राज्य के फलोत्पादक किसान की आय में भी इजाफा होगा। क्योंकि सीजन में कौड़ियों के भाव बिकने वाला फल बेमौसम में महंगे दाम पर बिकेगा।
उत्तराखंड में ढाई करोड़ की लागत से लगने वाली क्रिप्सी फ्रूट यनिट को जल्द ही उत्तराखंड मे स्थापित किया जाएगा। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो राज्य में लगने वाली यूनिट एक दिन में दो कुतंल फलों को करारा बनाएगी। मतलब तय है कि अगर सलीके से सरकार ने काम किया और जनता ने ध्यान दिया तो दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में बसे उत्तराखंडियों को चैत-बैशाख के काफल का स्वाद असूज कार्तिक में भी मिल जाएगा।
क्रिप्सी तकनीक से सात महीने बाद भी रसीले बने रहेंगे फल
आईएचबीटी की विकसित तकनीक में एक प्रक्रिया के जरिये फलों का पानी निकाल लिया जाता है। इससे बिना किसी प्रकार के रसायन मिलाए बगैर उन्हें सात महीने तक सुरक्षित रखा जा सकता है। ऐसे फलों को पुन: पानी में एक निश्चित समय तक रखकर वापस रसीले स्वरूप में लाया जा सकता है। यदि ऐसा नहीं करना हो तो क्रिप्सी यानी कुरकुरे स्वरूप में उनका इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें फलों का स्वाद कायम रहता है। आईएचबीटी ने हिमाचल की एक कंपनी को यह तकनीक सौंपी है और वह हिमाचल के फलों को क्रिप्सी स्वरूप में तैयार कर रही है।