देहरादून(मनीष डंगवाल) : उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार जीरो टाॅलरेंस पर काम करने का दावा करती आ रही है लेकिन शासन में ऐसे अधिकारी बैठें हैं जो कि सरकार के जीरो टाॅलरेंस की नीति की खुली धज्जियां उठा रहे हैंं। जी हां ये हम ऐसे ही नहीं कर रहे हैं जबकि एक आडियो से इसकी पुष्टि होती हुई नजर आ रही है, जिससे कहा जा सकता है कि उत्तराखंड में प्राईवेट स्कूलों की मान्यता दिलाने के नाम पर खुले तौर से पैसों की मांग की जा रही है। यहां तक कि अधिकारी ये तक कहते हुए नजर आ रहे हैं कि उन्होंने उनकी मांग के मुताबिक पैसे नहीं दिए तो उनकी मान्यता की फाइल फाइलों की बीच दबा दी जाएगी। आडियो अधिकारी और स्कूल संचालक के बीच बातचीत का है। आडियो में क्या कुछ बाते की जा रही है, आप सुन सकते हैं।
शिक्षा मंत्री के निजी सचिव तक पैसे पहुंचाने की बात की जा रही है
खास बात ये है कि शिक्षा मंत्री के निजी सचिव तक पैसे पहुंचाने की बात भी की जा रही है और जब शिक्षा मंत्री के निजी सचिव फोन करेंगे फाइल बढ़ाने में और आसानी की बात भी कही जा रही है। यहां तक अधिकारी स्कूल संचालक को शिक्षामंत्री के निजी सचिव का नम्बर भी बातचीत के दौरान दे रहे हैं। स्कूल संचालक जब अधिकारी से शिक्षा मंत्री के पैंसे लेने का सवाल पूछते हैं तो अधिकारी कहते हैं कि शिक्षा मंत्री तो नहीं लेकिन उनके स्टाॅफ के अधिकारी पैसे लेंगे। दो आडियो बातचीत के वायरल हुए हैं जो दूसरा इस प्रकार है।
आडिया से उठ रहे हैं सवाल
खास बात ये है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में प्रदेश में जीरो टाॅयरलेंस वाली सरकार चल रही है तो फिर कैसे स्कूलों की मान्यता दिलाने के लिए अधिकारी पैंसे की मांग रहे हैं, जिससे मुख्यमंत्री की छवि पर भी असर पर रहा है. साथ ही शिक्षा मंत्री कहते हैं कि उनके विभाग में पूरी तरह से भ्रष्टाचार खत्म हो गया है तो फिर ये भ्रष्टाचार का आडियो कैसे वायरल हो रहा है। यहां तक कि शिक्षा मंत्री के निजी सचिव का नाम भी आडियो में आ रहा है। हालांकि शिक्षा सचिव मिनाक्षी सुंदरम ने मामले का संज्ञान लिया है।
खबर उत्तराखंड ने की शिक्षा सचिव से बात
खबर उत्तराखंड से फोन पर बात करते हुए शिक्षा सचिव ने आडियो की जांच करने की बात कही है और कार्रवाई करने की बात भी कही है। शिक्षा मंत्री से मामले जब हमने उनकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की तो शिक्षा मंत्री से सम्पर्क नहीं हो पाया है। लेकिन देखना ये होगा कि आखिर पूरे मामले में शिक्षा मंत्री और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री क्या कुछ रूख अपनाते हैं?