2 अक्टूबर को रामपुर तिराहा कांड का वो काला दिन भला कौन भूल सकता है. भले ही आज उस रामपुर तिराहा कांड को हुए 25 साल हो गए हों लेकिन हर उत्तराखंडी उस काले दिन से समय से वाकिफ है और आज भी याद कर खून गर्म हो जाता है. जी हां 25 साल पहले उत्तराखंड से दिल्ली इंसाफ मांगने जा रहे आंदोलनकारियों का खून बहाया गया था। पीएसी और पुलिस की धड़धड़ाती गोलियों और लाठियों से उत्तराखंड के निहत्थे लोग लहूलुहान हो गए थे और कराह रहे थे लेकिन दिल में जज्बा था। भले ही उस कराहट को सुनने वाला कोई न था .
आंदोलनकारियों पर तत्कालीन सपा सरकार की बरसी थीं गोलियां
जी हां आपको बता दें कि 1 और 2 अक्टूबर, सन 1994 की रात अलग राज्य निर्माण की मांग को लेकर प्रदर्शन के लिए दिल्ली जा रहे लोगों को रामपुर तिराहे पर रोका गया था। इस दौरान पुलिस फायरिंग में छह व्यक्ति शहीद हो गए थे, एक ने अस्पताल मे दम तोड़ दिया था और एक आज तक लापता है। उत्तराखंड निर्माण के लिए चले संघर्ष में 2 अक्टूबर का दिन अविस्मरणीय बन चुका। यही वह दिन था जब उत्तराखंड से दिल्ली प्रदर्शन के लिए जा रहे आंदोलनकारियों पर तत्कालीन सपा सरकार की गोलियां बरसी थीं।
महिलाओं की इज्जत हुई थी तार-तार
जी हां आपको बता दें कि 1 और 2 अक्टूबर की रात को पीएसी और पुलिस की गरजती गोलियों के बीच आंदोलनकारी महिलाओं की अस्मत से खिलवाड़ के आरोप भी लगाए गए। मुजफ्फरनगर के लोगों ने आंदोलनकारियों को न केवल आश्रय दिया बल्कि मदद भी की। निकटवर्ती गांव सिसोना, रामपुर और मेदपुर के लोगों ने रात के अंधेरे में पुलिस बर्बरता के शिकार लोगों और महिलाओं को शरण दी थी और बाद में रामपुर तिराहा पर उत्तराखंड के शहीदों की याद में स्मारक का निर्माण कराया गया। यह स्मारक आज भी उत्तराखंड निर्माण के लिए यादें समाए खड़ा हुआ है।
तीर्थ बनी लहू से सनी माटी
उत्तराखंड के लोगों के लिए आज यह स्मारक किसी तीर्थ से कम नहीं है। खास तौर से रामपुर तिराहा कांड की बरसी पर हर साल यहां शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटते रहे हैं।
आठ आंदोलनकारी हुए थे शहीद
इस दौरान पुलिस फायरिंग और लाठीचार्ज में देहरादून के नेहरू कॉलोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, भाववाला निवासी सतेन्द्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, अजब पुर निवासी राजेश लखेडा, ऋषिकेश निवासी सूर्य प्रकाश थपलियाल तथा ऊखीमठ रुद्रप्रयाग निवासी अशोक शहीद हुए थे। घटनास्थल पर घायल शिमला बाइपास निवासी बलवंत सिंह जगवाण ने बाद में अस्पताल में दम तोड़ दिया था। भानियावाला निवासी राजेश नेगी इस घटना के बाद लापता हुए। उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिलने के बाद इस आंदोलन को तो सफलता मिल गई, लेकिन दो अक्टूबर 1994 को हुए इस गोलीकांड के बाद मुजफ्फरनगर का रामपुर तिराहा उत्तराखंडवासियों के लिए तीर्थ बन गया।