टिहरी – सूबे में सरकारी स्कूलों की सेहत यकीनन अब कोमा में पहुंच गई है, जब अलग राज्य बना था तब तक हालात इतने बिगड़े नहीं थे लेकिन उसके बाद हालात बिगड़ते चले गए। सरकारी शिक्षा ने न केवल जनता के बीच अपना विश्वास खोया बल्कि हाल ये हैं कि सरकारी खजाने से पगार उठाने वाले सरकारी मुलाजिम हों या सरकारी मास्टर या फिर विधायक और सांसद जैसे जनप्रतिनिधि कोई भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना पसंद नहीं करता।
आखिर सरकारी स्कूलों मे कोई अपने बच्चों को पढ़ाए तो पढ़ाए भी कैसे जब स्कूलों की हालत तबेलों से भी बदत्तर है। अभी कुछ दिन पहले हमने आपको धनोल्टी विधानसभा क्षेत्र के बांडा गांव के जमीन में गिरे प्राइमरी स्कूल की खबर बताई थी।
आज हम आपको धनोल्टी विधानसभा क्षेत्र के जौनपुर विकास खंड के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय भाल की मांडे की हकीकत बताते हैं। दर्जा 6 से दर्जा 10 यानि हाईस्कूल तक के इस स्कूल में 110 बच्चे तालीम हासिल करते हैं। बावजूद इसके विद्यालय की इमारत कब धराशायी हो जाए कोई नहीं जानता। आलम ये है कि न छत सलामत है न दरो-दीवार मे दम है अर्श से फर्श तक सब जर्जर है। हाल ये हैं कि बारिश बाहर होती है तो बच्चे कमरों के भीतर भीगनें लगते हैं। खिड़की-दरवाजे कुछ भी नहीं सब बेपर्दा।
जबकि भाल्की भांडे स्कूल भवन का निर्माण 2005 में हुआ था। तब स्कूल दर्जा आठ तक था लेकिन स्थानीय अवाम की मांग पर स्कूल का 2016 में उच्चीकरण कर हाईस्कूल कर दिया गया। सरकार ने भाल्की भांडे स्कूल का कागजी प्रमोशन तो किया लेकिन भौतिक सत्यापन नहीं किया। आज हाल ये है कि एक ही कमरे में दो-दो कक्षाओं को एक साथ पढ़ाया जा रहा है। टपकती छत के नीचे बच्चे अपना बस्ता लिए खड़े हैं, उन्हें समझ में नहीं आता कि बरसात में तालाब बन चुकी कक्षा में कहां पांव रखें और कहां खुद बैठें। 2005 में बनी स्कूल की इमारत ने सिर्फ 12 साल में बारिश के सामने घुटने टेक कर उस ठेकेदार और इमारत की गुणवत्ता जांच करने वाले महकमें की पोल खोल दी है।
बहरहाल अब सवाल ये है कि बीती भूल सुधारि के आगे की सुध लेय पर काम करते हुए इस स्कूल की हालत कब सुधरेगी? कहीं ऐसा न हो कि, जर्जर स्कूल इमारत किसी दिन शिक्षा महकमें पर संगीन दाग लगा दे और सरकार जनता के सामने अपना मुंह दिखाने के काबिल भी न रहे। सनद रहे कि निजी स्कूल में सिर्फ अपने वातावरण की ही मोटी फीस वसूलते हैं, वरना वहां पढ़ाने वाले टीचर्स की पगार हमारे सरकारी स्कूलों के अध्यापकों से कम होती है।
( धनोल्टी विधानसभा क्षेत्र से सुनील सजवाण के साथ देहरादून से पंडित चंद्रबल्लभ)