देहरादून- सूबे की चरमराई स्वास्थ्य सेवाओं के बीच राज्य में चल रही 108 सेवा अक्सर जनता के लिए वरदान साबित हुई है। खास कर दूर-दारज की ग्रामीण प्रसूता महिलाओं के लिए। 108 एंबुलेंस सेवा के आंकड़ों को जानकर आप समझ जाएंगे की सूबे में सेहत का सवाल कितना पेंचींदा है।
उत्तराखंड के आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड बनाने और संवेदनशील होने का दावा करने वाली तमाम सरकारे पिछले सोलह सालों से राज्य के इस सुलगते सवाल का उत्तर तलाश नहीं पाई। राज्य के मैदानी इलाकों में हर बार एक शानदार निजी अस्पताल खुलता है जबकि हर साल कई डॉक्टर सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे रहे हैं।
न सरकार पर फर्क पड़ता है न धरती के भगवान माने जाने वाले उन डॉक्टर्स पर जो मानव सेवा की कसम खाते हैं। सूबे के पहाड़ी इलाकों के अस्पताल को देखकर तो यही लगता है। बहरहाल आम आदमी के लिए वरदान बन चुकी 108 एंबुलेस सेवा के मीडिया प्रभारी मोहन राणा की माने तो अब तक 9680 प्रसव एंबुलेस में हो चुके हैं। जबकि एंबुलेंस में कोई डाक्टर तैनात नहीं होता। सिर्फ एक पायलेट और तकनीशियन के भंरोस उत्तराखंड में उम्मीदों की फसल लहलहा रही है। तय है कि हालात यूं ही रहेंगे और बहुत जल्द एंबुलेंस दस हजारी हो जाएगी। सिर्फ 320 प्रसव होने बाकी हैं।
आपको बता दें कि बीते रोज श्रीनगर- ऋषिकेश मार्ग में भूस्खलन होने से शिवपुरी में सड़क बंद हो गई। प्रसूता की वेदना बढ़ गई मजबूरी में 108 एंबुलेस मे तैनात तकनीशियन को डॉक्टर बनना पड़ा। तकनीशियन ने कॉल सेटर में तैनात गायनोकॉलोजिस्ट से निर्देश लिए और एंबुलेस में मौजूद प्रसव किट के सहारे सफल प्रसव करा कर 108 सेवा को खुशियों की सवारी बना दिया।
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि, पहाड़ो की कनैक्टिविटी को देखते हुए अगर कभी कॉल सेंटर की सेवा कामयाब न हुई तो दो जिंदगियों पर क्या गुजरेगी। तकनीशियन क्या करेगा सिवाय एक प्रसूता को तड़फता हुआ देखने के अलावा। क्या किसी जिम्मेदार का दिल पसीजेगा इन हालातों से ?