देहरादून- भगवान शिव की धरती मानी जाने वाली उत्तराखंड में उनको प्रिय मानी जाने वाली भांग की खेती भी की जा सकती है। इसलिए भांग की खेती का नाम सुनकर न बिदकें और न नाक भौं सिंकोड़ें और न ही डरें। जब से राज्य बना है तब से पहली बार किसी सरकार ने राज्य में भांग की खेती करने के लिए शासनादेश जारी किया है। सरकार ने भांग की खेती के पीछे दलील दी है कि भांग का उत्पादन व्यवसायिक रूप से किया जाएगा।
दरअसल गुजरे दौर में भी राज्य के पहाड़ी इलाकों में भांग की खेती होती थी। भांग के स्वादिष्ट और पौष्टिक माने जाने वाले बीजों को जहां तड़के के रूप और सीधे सेवन किया जाता था तो वहीं इसके रेसों को हस्तशिल्प में इस्तेमाल किया जाता था। उस दौर में में भी भांग के रेशों से रस्सी बुनी जाती थी। मौजूदा वक्त में भी सरकार ने यही तर्क दिया है कि भांग के रेशे का वाणिज्यिक इस्तेमाल किया जाएगा।
हालांकि भांग की खेती राज्य मे इतनी आसान नहीं होगी जितनी की दूसरी फसलें। इसके लिए इच्छुक काश्तकार को जिलाधिकारी के मार्फत आवेदन करना होगा और तय शर्तों का पालन करना होगा, तभी काश्तकार को भांग की खेती के लिए लाइसेंस दिया जाएगा। शर्ते कड़ी है ऐसे में देखना है कि कितने काश्तकार भांग की खेती के लिए दिलचस्पी दिखाते हैं। तय है कि अब कोई ये सुनकर नाराज नहीं होगा कि ‘भांगलू जमलू तेरा डोखरा फुंगड़ों मां’