देहरादून-बीते 11 अक्टूबर के दिन देहरादून खूनी सियासी हमले का गवाह भी बना। देहरादून के माकपा दफ्तर पर भाजपा के कई बड़े नेताओं की अगुवाई में एक रैली पहुंची। बताया गया कि भाजपाई मकपा दफ्तर में केरल में हो रही संघ कार्यकर्ताओं की हत्या का विरोध दर्ज कराने गए थे। लेकिन उसके बाद वहां ऐसा मंजर हुआ कि शायद जिसकी किसी ने कल्पना भी न की हो। मार-पीट लहूलुहान कि इस घटना को लेकर सीपीआई (एमएल) के नेता और कर्णप्रयाग सीट पर अपनी तकदीर अजमा चुके कामरेड इंद्रेश मैखुरी ने अपनी फेसबुक वॉल अपने जज्बात शेयर किए हैं। मैखुरी ने सवाल किया है कि आखिर अधेड़ अवस्था प्राप्त कर चुके भाजपा के सम्मानित नेताओं को लंपट लौंडा बनने की जरूरत क्यों आन पड़ी। आप भी पढ़िए….
“11अक्टूबर को देहरादून में माकपा के कार्यालय पर हमले की घटना में शामिल किरदारों के नाम सामने आते ही मुझे बरबस,साल 2010 याद आ गया.दरअसल इस वर्ष में माकपा के दिग्गज नेता और पश्चिम बंगाल के दो दशक से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु का निधन हुआ था.बसु के निधन पर माकपा की उत्तराखंड इकाई ने देहरादून में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की थी.यह श्रद्धांजलि सभा एक सर्वदलीय कार्यक्रम था,जिसमे कांग्रेस,भाजपा,सपा,बसपा समेत सभी राजनीतिक दलों के लोग शामिल थे.अपनी पार्टी-भाकपा(माले) की ओर से मैं इस श्रद्धांजली सभा में शामिल हुआ था.
अब आते हैं,इस बात पर कि इस श्रद्धांजली सभा को परसों हुए हमले के संदर्भ में क्यूँ याद किया जा रहा है.दरअसल परसों माकपा दफ्तर पर प्रदर्शन(जो हमले में तब्दील हुआ) की अगुवाई करने वालों में उत्तराखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हरबंस कपूर,कभी सपाई,कभी बसपाई,कभी जनवादी पार्टी चलाने वाले और वर्तमान में भाजपाई विधायक मुन्ना सिंह चौहान भी शामिल थे.जिस श्रद्धांजली सभा का जिक्र ऊपर किया गया है,ये दोनों ही महानुभाव उसमें शरीक थे.यह सभा उसी पुराने बस अड्डे पर हुई थी,जहाँ से भाजपा वाले, माकपा कार्यालय पर हमला करने पहुंचे थे.
इस सभा में खरखराती आवाज और पंजाबी एक्सेंट में बोलते हुए हरबंस कपूर ने कहा-ज्योति बसु सिर्फ आप ही के नहीं थे,वो हमारे भी थे.यह बात मुझे सिर्फ इसीलिए याद रही क्यूंकि भाजपा का एक बड़ा नेता,ज्योति बसु के अपना होने पर बड़ी शिद्दत से जोर दे रहा था.
उक्त सभा में मुन्ना सिंह चौहान भी शरीक हुए थे.उस वक्त मुन्ना चौहान भाजपा छोड़कर,बसपा से लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद उसे भी छोड़ चुके थे.मंच से बोलते हुए मुन्ना भाई ने बंगाल में हुए भूमि सुधार की शान में काफी कसीदे पढ़े थे.राजनीति में रेडिकल होने पर जोर देते हुए,उन्होंने कहा कि-रेडिकल लोगों को ब्यूरोक्रेट गुंडा समझते हैं.बाद में मैंने उनसे कहा कि आपका भाषण काफी अच्छा था,पर मेरी समझ में नहीं आया कि स्वयं को रेडिकल मानने वाला आदमी,रिएक्श्नरी पार्टी में क्यूँ जाएगा ?बात को गोलगोल घुमाते हुए मुन्ना भाई ने कहा कि- वो तो अटल जी के समय हमें लगा कि this party has changed ! यही मुन्ना चौहान पुनः भाजपा में भर्ती हुए और अब दफ्तर पर हमले जैसे कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं.
माकपा दफ्तर पर हमला/प्रदर्शन में शामिल एक और शख्स थे धर्मपुर से विधायक होने के बावजूद मेयर की कुर्सी पर भी काबिज विनोद चमोली.चमोली साहब को भी मैंने भाकपा के बड़े नेता रहे कामरेड कमलाराम नौटियाल की स्मृति में होने वाले कार्यक्रम में मंच से भाषण देते हुए देखा है.
इन भाजपा नेताओं की यह रंग बदलती राजनीति भी क्या खूब है कि अवसर आया तो ये मंच पर चढ़कर कम्युनिस्टों की तारीफ़ों की पुष्प वर्षा भी कर सकते हैं और दूसरे मौके पर कम्युनिस्टों के दफ्तर पर पत्थर वर्षा करने वालों की अगुवाई भी कर सकते हैं.
यह भी सोचनीय है कि अधेड़ अवस्था को प्राप्त हो चुके इन महानुभावों को “ज्ञान,शील,एकता” ब्रांड के लम्पट लौंडों की तरह,किसी राजनीतिक पार्टी के दफ्तर पर हमले में शामिल होने की जरूरत क्यूँ आन पड़ी?इसका सम्बन्ध किसी राजनीतिक सवाल या वैचारिक विरोध से नहीं है.इसका सम्बन्ध अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने से है.प्रदेश सरकार में दो मंत्रियों के पद रिक्त हैं.हरबंस कपूर विधानसभा अध्यक्ष न बनाए जाने के समय से ही छटपटा रहे हैं.मुन्ना सिंह चौहान भी विधायक होने के बावजूद हाशिये पर ही हैं.कोई उनको पूछ ही नहीं रहा है.मेयर और विधायक होने के बावजूद विनोद चमोली की तो और भी गत खराब है.पिछले दिनों देहरादून के जिलाधिकारी ने ही उन्हें सार्वजनिक रूप से हड़का दिया.
जो विधायक कम्युनिस्टों को अपना महामारक शत्रु भी नहीं समझते,यदि वे कम्युनिस्टों के दफ्तर पर हमले में शरीक होते हैं तो उसके पीछे विधायक होने के बावजूद सालती राजनीतिक बेरोजगारी ही मुख्य वजह है.यह राजनीतिक क्षरण का ही नमूना है.जो अपने वजूद और राजनीतिक हैसियत के लिए किसी भी हद तक और कहीं भी जाने को तैयार हों,उनसे विपक्षी पार्टियों के दफ्तर ही नहीं लोकतंत्र को भी बचाने की जरूरत है.”
(इंद्रेश मैखुरी की फेसबुक वॉल से)