देहरादून : आजकल उत्तराखण्ड विधानसभा में श्राइन बोर्ड को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच गर्मागर्मी देखने को नज़र आ रही है. दरअसल सरकार की मंशा उत्तराखंड के चारों धाम सहित उत्तराखंड के प्रसिद्द मंदिरों को श्राइन बोर्ड बनाकर उस बोर्ड के अधीन लाना चाहती है , जिसके लिए बाकायदा कानून बनाने को लेकर विधेयक भी उत्तराखंड विधानसभा के मौजूदा सत्र में रखा जा चूका है।
श्राइन बोर्ड का मकसद जहाँ एक ओर मंदिरों में चढ़ने वाले चढ़ावे और दान पर…
इस श्राइन बोर्ड का मकसद जहाँ एक ओर मंदिरों में चढ़ने वाले चढ़ावे और दान पर नियंत्रण करके उसको उन्ही मंदिरों और धामों के विकास पर खर्च करना है. दूरी और यात्रियों को और अधिक सहूलियत और सुविधाएं उपलब्ध कराना भी है. अब जाहिर है सरकार के इस कदम से सैकड़ों सालों से मंदिरों के चढ़ावे से अपना घर भरने वाले पंडा पुजारी समाज को तकलीफ होना लाज़िमी है. वैसे इन पंडा पुजारियों से जो सरकार के श्राइन बोर्ड का विरोध कर रहे हैं उनसे ये पूछा जाना चाहिए की हर साल उत्तराखंड के धामों सहित मंदिरों में आने वाले करोड़ों रुपये का आज तक क्या हुआ ? क्यों आज तक यात्रिओं को उस पैसे से सहूलियत और सुविधाएँ जो मुहैया कराई जा सकती थीं और उस पैसे से कितना विकास उन तीर्थस्थानों का किया जा सकता था , क्यों नहीं हुआ ?
हकीकत ये है की जो लोग आज से २५-३० पहले वैष्णो देवी गए हों उनको पता होगा कि कैसे पत्थरों पर चल कर नंगे पैर कठिन यात्रा होती थी, जहाँ पाँवों में मोटे मोटे छाले पड़ जाते थे, वजह थी कि माँ वैष्णो देवी को चढ़ने वाला करोड़ों का चढ़ावा तत्कालीन पुजारियों के घरवालों की तिजोरी भरने के काम आता था और यात्रियों के साथ रहने खाने के नाम पर जो लूट खसूट होती थी वो अलग.
जम्मू कश्मीर में श्राइन बोर्ड का गठन हुआ तब से वहां के पुजारियों ने खूब धर्म की दुहाई दी
वहीं जब पहली बार जम्मू कश्मीर में श्राइन बोर्ड का गठन हुआ तो वहां के पुजारियों ने भी खूब धर्म की दुहाई दी लेकिन तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने उस समय पुजारियों की एक नहीं सुनी , और आज वैष्णो देवी के दर्शन करना जितना सुलभ है वो सबको पता है , पूरा रास्ता कवर हो चूका है , पत्थरों की जगह पक्की सड़क है , जगह जगह श्रीं बोर्ड के रेन बसेरे हैं और यात्री निवास हैं , इतना ही नहीं श्राइन बोर्ड के हेलीकाप्टर यात्रा की कीमत भी महज १२ -१५०० रुपये है।
अगर उत्तराखंड में भी एक ऐसा श्राइन बोर्ड बनता है जिससे चारों धाम विकसित हों और हमारे मंदिर और सुविधाएं और विकसित होंगी तो जाहिर है हमारे यहाँ भी यात्रा बढ़ेगी और यात्रा जितनी ज्यादा बढ़ेगी उतना ही रोजगार और काम स्थानीय युवाओं और परिवारों को मिल पायेगा और करोड़ों रुपया साल इन्ही धामों और मंदिरों के विकास में खर्चा होगा तो वो दिन दूर नहीं होगा जब प्रतिवर्ष हमारे यहाँ पूरे साल यात्री आएंगे और पैसे खर्च करेंगे जिससे हमारी अर्थव्यस्था तो मजबूत होगी ही हमारे लोगों को काम और नौजवानों को रोजगार मिल पायेगा , रही बात पंडा पंडितों की उनको तो तकलीफ होगी ही।