देहरादून- उत्तराखंड सरकार के खिलाफ निजी स्कूलों के प्रबंधकों ने आज से मोर्चा यूं ही नहीं खोला है ।
दरअसल सरकार के फैसले से निजी स्कूल के मालिकान को हर सत्र में लाखों का नुकसान होने के आसार बन गए।
तय है कि अगर सरकार अपने इस ऐलान पर अड़ी रही तो निजी स्कूलों के मुनाफे को करारी चोट पहुंचेगी।
लिहाजा निजी स्कूलों ने धरना और अनिश्चितकालीन बंद का ऐलान करते हुए सरकार पर दबाव बनाने की एक कोशिश की है। ऐसे में देखना ये दिलचस्प होगा कि सरकार अभिभावकों की कमाई चूसने वाले निजी स्कूलों के दबाव में आती है या अपने ऐलान को अंगद का पांव बनाती है।
बहरहाल तय है कि अगर सरकार NCERT की किताब लागू करवाने पर अड़ी रही तो निजी स्कूलों को लाखों का नुकसान होना तय है। सूत्रों की माने तो निजी स्कूलों को पतली और रंग-बिरंगी महंगी किताब पढ़ाने के लिए पुस्तक प्रकाशकों से 40 से 50 फीसदी कमीशन मिलता है। किताबों की छपाई की कम लागत आने के चलते प्रकाशक इसके लिए निजी स्कूलों के लिए पलक पांवड़े बिछाने को तैयार रहते हैं।
इस लिहाज से जरा मोटा मोटा हिसाब लगाया जाए तो पता चलता है कि एक ही छात्र का एक सत्र का बिल कम से कम तीन हजार से कम का नहीं होता। ऐसे में जिस स्कूल में सिर्फ तीन सौ छात्र ही हों वहां भी 9 लाख की किताबे बिक जाती हैं। इस बिक्री से स्कूल को साढ़े तीन लाख से चार लाख रूपए का सालाना मुनाफा होता है।
इस मुनाफे में और इजाफा तब हो जाता है जब स्कूल खुद ही किताबों का काउंटर लगा देता है या पूरे शहर में किसी एक ही पुस्तक विक्रेता को किताब बेचने के लिए मुकर्रर कर देता है। किताब विक्रेता अपनी मोनोपॉली बनाने के लिए स्कूल का अहसानमंद रहता है और बिकी किताबों की एवज में स्कूल का तय कमीशन उसे सौंपता है।
निजी स्कूलों के इस मुनाफे के मोटे खेल पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि मामूली स्कूल भी किताबों के खेल से हजारों कमा लेते हैं। नामी स्कूलों के खजाने पर तो हर सत्र में किताबों की बदौलत कुबेर मेहरबान हो जाते हैं। लेकिन NCERT की सस्ती किताब लागू होने से निजी स्कूलों की ये कमाई पूरी तरह बंद हो जाएगी। यही वजह है कि NCERT की किताब पढ़ाने के फैसले से निजी स्कूल न केवल बिदक रहे हैं बल्कि बगावती तेवर भी दिखा रहे हैं।