उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव का दौर चल रहा है और उत्तराखंड की पांच सीटो में से हरिद्वार सीट का अपना अलग ही मिजाज देखने मिल रहा है। इस बार हरिद्वार सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होता साफ नजर आ रहा है। हरिद्वार सीट के इतिहास की बात की जाए तो इस सीट ने काफी राजनीतिक करवटें ली हैं। हरिद्वार सीट के लिए कहा जाता है की यहां बदलते मौसम के साथ राजनीति भी करवट लेती है।
बाकी सीटों पर भी दिखता है इस सीट का असर
हरिद्वार लोकसभा सीट साल 1977 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। आपको बता दें की इस लोकसभा सीट में हरिद्वार और देहरादून की कुल 14 विधानसभा सीटें शामिल हैं। जितनी रोचक इस सीट की राजनीति है उतना ही दिलचस्प इसका इतिहास भी रहा है। ऐसा माना जाता है कि जिस भी पार्टी की जीत हरिद्वार लोकसभा सीट से होती है उसका असर बाकी चार लोकसभा सीटों पर भी देखने को मिलता है।
चार बार कांग्रेस तो छह बार बीजेपी जीती
हरिद्वार लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा ग्रामीण आबादी होने की वजह से साल 1977 से लेकर 2004 तक ये सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व रही। लेकिन साल 2009 आते आते इस सीट को सामान्य घोषित कर दिया गया। पिछले 10 लोकसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस इस सीट से महज चार बार चुनाव जीती है। जबकि बीजेपी ने यहां 6 बार अपना परचम लहराया है।
आपको ये जानकर हैरानी होगी की भले ही हरिद्वार हिंदुओं के धार्मिक स्थल के रूप में मशहूर हो लेकिन राजनीति की बात की जाए तो यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। हरिद्वार सीट सबसे ज्यादा वोटरों वाली दूसरी सीट है। इस सीट पर 14.53 लाख पंजीकृत मतदाता हैं।
लोकसभा चुनावों का फ्लैशबैक
साल 1977 में इस सीट पर पहली बार चुनाव कराए गए। तब भारतीय लोक दल के भगवान दास ने 255091 मत पाकर कांग्रेस के सुंदर लाल को मात दी। साल 1980 में भारतीय लोक दल के जगपाल ने चुनाव जीता। साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हरिद्वार की से ये सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। सुंदर लाल ने 253892 वोटों से लोक दल के जगपाल सिंह को मात दी। इसके बाद साल 1989 में इस सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा। कांग्रेस के जगपाल सिंह ने 187990 वोटों से चुनाव जीत कर जनता दल के धर्म सिंह को मात दी।
लगातार तीन बार जीती जनता पार्टी
साल 1991 में भारतीय जनता पार्टी के राम सिंह ने इस सीट पर चुनाव जीता। इस साल जहां जनता दल दूसरे नंबर पर था। वहीं कांग्रेस ने 77832 वोट पाकर तीसरा स्थान हासिल किया था। इसी के साथ लगातार तीन लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर कब्जा जमाए रखा।
साल 1996 में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हरपाल साथी 227675 मतों के साथ जीते तो उन्होंने जीत की हैट्रिक लगा दी। साल 1998 और साल 1999 के लोकसभा चुनावों में भी हरपाल साथी को ही जीत मिली। इसके बाद साल 2004 में राजेंद्र कुमार ने समाजवादी पार्टी से जीतकर सबको हैरत में डाल दिया। इस साल भारतीय जनता पार्टी तीसरे स्थान पर थी। जबकि बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार भगवान दास 119,672 मत पाकर दूसरे स्थान पर थे।
हरीश रावत की राजनीतिक किस्मत भी यहीं से खुली
2009 के आम चुनावों में इस बार कांग्रेस ने जीत हासिल की। कहा जाता है हरीश रावत की राजनीतिक किस्मत भी यहीं से खुली। इस जीत ने उन्हें केद्रीय कैबिनेट में जगह दिलाई। इसी के साथ उन्हें मुख्यमंत्री पद का पदभार भी मिला। साल 2014 में सीएम रहते हुए हरीश रावत ने अपनी पत्नी रेणुका रावत को लोकसभा के चुनावी मैदान में उतारा। लेकिन इस साल भाजपा प्रत्याशी रमेश पोखरियाल निशंक ने 592,320 मतों से जीत कर रेणुका रावत को मात दी। इसके बाद साल 2019 के चुनावों में निशंक ने एक बार फिर जीत हासिल की।