ब्यूरो– उत्तराखंड में करीबी मुकाबला होता रहा है। लिहाजा यहां एक-एक सीट दोनों दलों के लिए अहमियत रखती है।
बेशक राज्य के एक्जिट पोल चाहे जो भी कहें , हकीकत ये है कि सूबे के सियासी दलों के कई कार्यकर्ता दुआ कर रहे हैं कि काश हम पुरोला सीट हार जांए।
दरअसल सूबे के पहले आम चुनाव से लेकर 2012 तक के चुनाव नतीजों ने अब तक के नतीजों में कई दिलचस्प बातें रही हैं। मसलन शिक्षामंत्री अगला चुनाव नहीं जीत पाते तो उत्तरकाशी जिले की पुरोला सीट जीतने वाले की सरकार नहीं बनती। जबकि उसी उत्तरकाशी जिले की गंगोत्री सीट जीतने वाले उम्मीदवार के दल की सरकार बनती है।
पुरोला सीट पर 2002 में मालचंद जीते सरकार बनी कांग्रेस की उसके बाद 2007 में कांग्रेस के टिकट पर राजेश जुवांठा जीते तो सरकार बनी भाजपा की। जबकि 2012 में फिर से भाजपा के टिकट पर मालचंद जीते तो सूबे में सरकार बनी कांग्रेस की।
उधर गंगोत्री विधानसभा सीट के नतीजों पर गौर फरमाइए 2002 में काग्रेस के टिकट पर जीते विजयपाल सजवाण उस वक्त कांग्रेस की सरकार बनी। 2007 भाजपा के टिकट पर जीते गोपाल रावत तो भाजपा की सरकार बनी उसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में काग्रेस के टिकट पर फिर विजयपाल सजवाण विधानसभा पहुंचे तो सरकार बनी कांग्रेस की।
इस बार देखना ये दिलचस्प होगा कि इस चुनाव में क्या होता है। पुरोला और गंगोत्री सीट से जुडे मिथक टूट पाएंगे। बहरहाल मिथकों पर यकीन करने वालों का मानना है कि सरकार उसी की बनेगी जो गंगोत्री को फतह करेगा और पुरोला को हार जाएगा।