देहरादून- शराब और खनन के कारोबार के आगे घुटने टेक चुकी सूबे की सरकार ने जल्दबाजी में एक ऐसा कदम उठाया है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि, ये कदम सरकार के लिए गले की फांस तो बनेगा ही जानकारों की नजर में अदालत की अवमानना भी है। उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार को बैकफुट पर लौटना पड़े।
दरअसल अब तक राज्य में सरकार उपखनिज चुगान के लिए सरकारी भूमि के साथ-साथ निजी भूमि पर भी चुगान के पट्टे जारी करती थी। सरकारी जमीन पर सरकार खुद तो निजी जमीन पर जमीन मालिक सरकार से चुगान की इजाजत लेकर उपखनिज चुगान का काम करता था।
लेकिन नई सरकार ने नई खनन नीति के तहत सरकारी पट्टे के साथ साथ किसानों की निजी जमीन पर भी आंख गाड़ा दी है ताकि । खनन की आय का तय टारगेट पूरा कर कर वाहवाही लूट सके।
सरकार के नए फैसले के तहत अब किसान को अपने खेत की साफ-सफाई के लिए चुगान की इजाजत नहीं मिलेगी बल्कि सरकार किसान की निजी नाप भूमि को भी ई टेंडर के जरिए नीलाम करेगी,तब जाकर किसान का खेत साफ होगा।
हालांकि सरकार कितनी निजी माप की जमीन पर ई टेंडर करवाएगी इसका कोई खाका सरकार के पास अब तक नहीं है लेकिन सरकार के इस फैसले से राज्य के किसानों में निराशा का भाव है। किसानों की इस नाराजगी को कांग्रेस कैश करने की तैयारी कर रही है।
उधर बताया जा रहा है कि, इससे पहले केरल सरकार ने ऐसा करने की कोशिश की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले को पलट दिया और किसान को निजी जमीन पर परमिट लेकर खनन की इजाजत दी थी । ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार ने जल्दबाजी में न्यायपालिका के आदेश की अवहेलना कर दी है।
इसके साथ ही ये भी माना जा रहा है कि कांग्रेस मसले को उठाएगी और राज्य सरकार को नई खनन नीति पर उसी तरह बैक फुट पर जाकर संशोधन करना होगा जैसे जीएसटी के मसले पर केंद्र सरकार संशोधनों के रास्ते पर गई है।