भारत और चीन सीमा पर एक बार फिर से तनावपूर्ण स्थिती पैदा हो गई है। भारत और चीन के बीच 1962 में हुआ एक युद्ध अब भी दक्षिणी एशिया के युद्धों के इतिहास में खासा चर्चा का विषय बना हुआ है।
इस युद्ध को लेकर काफी दिनों तक असमंजस की स्थिती बनी रही कि आखिर चीन ने भारत पर हमला क्यों किया। युद्ध के जानकारों को भी ये काफी दिनों तक समझ नहीं आया कि चीन ने भारत पर हमला करने की गलती क्यों की।
इस रहस्य से पर्दा युद्ध के तकरीबन चार दशकों बाद उठा जब चीन की पीकिंग यूनीवर्सिटी के स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन एवं चीन के विदेश मंत्रालय की विदेश नीति सलाहकार समिति के सदस्य वांग जिसी ने एक रिपोर्ट पेश की।
इस रिपोर्ट के मुताबिक चीन के दिवंगत कद्दावर नेता माओत्से तुंग ने ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ आंदोलन की असफलता के बाद सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी पर अपना फिर से नियंत्रण कायम करने के लिए भारत के साथ वर्ष 1962 का युद्ध छेड़ा था।
जिसी ने कहा कि भारतीय राजनयिकों के अनुसार चीन नेतृत्व कई बार जिसी से सलाह मशविरा करता था. जिसी ने कहा, ‘मेरा मानना है कि हमें कुछ अनुसंधान करना चाहिए। मैंने एक किस्सा सुना है कि यह माओत्से तुंग के चीन में अपनी स्थिति के भय के चलते था कि उन्होंने वर्ष 1962 युद्ध शुरू किया था।’
ये रिपोर्ट कहती है कि, साल 1962 में ग्रेट लीप फॉरवर्ड (जीएलएफ) के बाद माओत्से ने सत्ता और प्राधिकार खो दिया। वह अब देश के प्रमुख नहीं थे और वह तथाकथित दूसरी पंक्ति में चले गए. हमें उस समय जो स्पष्टीकरण दिया गया वह यह था कि उनकी क्रांति और अन्य चीजों में अधिक रुचि है।’
जाहिर है कि चीन के एक कम्यूनिस्ट नेता ने चीन में अपनी छवि और कद को बनाए रखने के लिए दो देशों को युद्ध के मैदान में ला खड़ा किया। जिसी की माने तो, माओत्से ने तिब्बत के कमांडर झांग को बुलाया और पूछा कि क्या आप इस बात का भरोसा है कि आप भारत के साथ युद्ध जीत सकते हैं.’ झांग गुओहुआ तिब्बत रेजीमेंट के तत्कालीन पीएलए कमांडर थे। झांग ने कहा कि, हां, हम युद्ध जीत सकते हैं। इसके बाद माओत्से ने कहा कि, ‘आगे बढ़ो और अंजाम दो’।