आशीष तिवारी। उत्तराखंड के तकरीबन हर हिस्से में शराब की दुकानों का विरोध हो रहा है। पिछले एक महीने में धीरे धीरे ही सही लेकिन ये विरोध अब मुखर होने लगा है। इस विरोध की कमान राज्य की महिलाओं के हाथ में है। हालांकि ये विरोध संगठित नहीं है लेकिन संगठित विरोध से कहीं आक्रामक होता जा रहा है। राज्य के अलग अलग हिस्सों से आती खबरें और तस्वीरें बताती हैं राज्य में शराब स्वीकार्य नहीं है। हालात ये हैं कि महिलाएं अब कानून को हाथ में लेने लगीं हैं। रुद्रप्रयाग से लेकर रुड़की तक इस विरोध की ऐसी तस्वीरें आईं जो बताती हैं कि शराब की दुकानें के खिलाफ हमारा समाज सहर्ष तौर पर उद्वेलित है। हम महिलाओं को आधी आबादी का दर्जा देते हैं और इस लिहाज से आधी आबादी शराब के विरोध में सड़कों पर है। रुद्रप्रयाग में महिलाओं ने शराब की दुकान का स्टाक सड़क पर बिखेर दिया तो रुड़की में महिलाएं धरने पर बैठ गईं। देहरादून के थानो इलाके में दुकान के बाहर हंगामा हुआ तो हल्दवानी में महिलाएं नारेबाजी करती रहीं।
उत्तराखंड में महिलाओं का स्थान बेहद अहम है। राज्य का इतिहास महिलाओं की शौर्य गाथा से भरा हुआ है। ऐसे में महिलाओं के विरोध से नजरें फेरना महिलाओं के सम्मान को कम करने सरीखा होगा।
शराब का विरोध अब धीरे धीरे पूरे राज्य में होने लगा है इसके बाद भी सरकार इस मसले पर चुप्पी साधे हुए है। मुख्यमंत्री ये तो बता चुके हैं कि राज्य सरकार फिलहाल शराब बिक्री बंद करने के बारे में नहीं सोच रही है लेकिन महिलाओं के शराब की दुकानों के विरोध के संबंध में मुख्यमंत्री का कोई संवाद नहीं याद आता। इस संवादहीनता से इस बात की आशंका प्रबल होती है कि सरकार इस मसले पर बहुत कुछ बोलना नहीं चाहती। महिलाओं के विरोध को देखकर भी अनदेखा रखना चाहती है।
शराब बेचने से राज्य को होने वाली वाली आय यकीनन बड़ी है और एक झटके में इसका निदान भी संभव नहीं है। अच्छा होता कि सरकार शराब को लेकर आधी आबादी के मनोभावों को समझती और शराब को चरणबद्ध तरीके से राज्य में बंद कराती, संवादहीनता से बाहर आकर सबके सामने अपनी सोच को जाहिर करती।