देहरादून। उत्तराखंड छात्र राजनीति के सबसे बड़े केंद्र बिंदु डीएवी पीजी कॉलेज में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी की हार के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं। आपसी फूट का खामियाजा बोलकर इस मामले पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही हो लेकिन सवाल खड़े हो रहे हैं। क्योंकि 12 साल से लगातार जीत रही ABVP का प्रत्याशी इस बार फाइट में दिखाई ही नहीं दिया। मुकाबला NSUI और AVBP से बागी होकर चुनाव लड़ रहे निखिल शर्मा के बीच दिखाई दिया।
क्या इतने बड़े संगठन के पदाधिकारी DAV कॉलेज में चुनावी माहौल भांपने में चूक गए या फिर वजह कुछ और थी।
अभाविप के अभेद दुर्ग को इस बार बागी हुए ‘अपनों’ ने ही गिरा दिया
पिछले 12 साल से अभाविप के अभेद दुर्ग को इस बार बागी हुए ‘अपनों’ ने ही गिरा दिया। बागी गुट के पांच पूर्व अध्यक्षों व दो वरिष्ठ नेताओं ने मिलकर अभाविप संगठन के कई कद्दावर नेताओं को आइना दिखा दिया। ABVP के प्रत्याशी को करारी मात देकर इन बागी नेताओं ने यह भी सिद्ध कर दिया कि सालभर छात्र-छात्राओं के बीच रहकर उनकी समस्याओं को सुनने वाले छात्र नेताओं पर ‘संगठन’ अपनी मनमानी नहीं थोप सकता है।
बागी तेवर अपनाने वाले इन पांच पूर्व अध्यक्षों के साथ बैठकर नहीं की सुलाह
ABVP को मिली इतनी करारी पराजय का एक बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है कि अभाविप से बागी हुए निखिल शर्मा ने काफी पहले बतौर अध्यक्ष चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन चुनाव की तिथि से महज 15 दिन पहले सागर तोमर के नाम का एलान किया। अभाविप का यह आकलन भी गलत साबित हुआ कि डीएवी कॉलेज के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष जितेंद्र बिष्ट, शुभम सिमल्टी, राहुल लारा, आशीष रावत, राहुल रावत के साथ-साथ सबसे वरिष्ठ छात्र नेता ओम कक्कड़ के अभाविप से जाने से संगठन को कोई ज्यादा नुकसान नहीं होगा। अपनी बात मनवाने के लिए करीब दो महीने से बागी तेवर अपनाने वाले इन पांच पूर्व अध्यक्षों के साथ मिल बैठकर सुलह का रास्ता निकालने की अभाविप संगठन की ओर से पहल नहीं की गई।
बागी नेताओं व भाजयुमो में टकराव शुरू होने लगा
अभाविप ने इन छात्र नेताओं से सुलह के बजाय कॉलेज परिसर में भाजयुमो को तरजीह देनी शुरू कर दी। जिसके बाद बागी नेताओं व भाजयुमो में टकराव शुरू होने लगा। चार दिन पहले अभाविप व बागी गुट के बीच हुए खूनी संघर्ष का मैसेज भी छात्रों के बीच अच्छा नहीं गया। बागी गुट ने मारपीट में घायल होने पर जमकर सहानुभूति बटोरी।
अभाविप प्रत्याशी सागर तोमर को बागी प्रत्याशी निखिल शर्मा से करीब 800 वोटों से हराया
छात्र राजनीति के जानकार व अभाविप संगठन सागर तोमर और निखिल शर्मा के बीच कांटे की टक्कर की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन छात्र वोटरों ने एकतरफा फैसला सुनाया। अभाविप के प्रत्याशी सागर तोमर को बागी प्रत्याशी निखिल शर्मा से करीब 800 मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष शुभम सिमल्टी का बयान
पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष शुभम सिमल्टी ने जीत पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि ABVP के पदाधिकारियों को अपनी मनमानी न कर जमीन से जुड़े युवाओं की बात सुननी चाहिए थी।
पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष व ABVP के पूर्व नेता आशीष रावत का बयान
निखिल शर्मा के साथ अन्याय हुआ। इसलिए मुझे और अन्य साथियों को अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करनी पड़ी। जब ABVP संगठन ने लम्बे समय से सक्रिय सदस्य रहे निखिल शर्मा को संगठन में कोई दायित्व न देकर यह कहा कि आप DAV में चुनाव की तैयारी करो। निखिल संगठन का आदेश मानकर चुनाव की तैयारी में लग गया। लेकिन अचानक 4 महीने पहले निखिल शर्मा को मना कर दिया गया कि आपको टिकट नहीं दिया जाएगा। संगठन ने नाम पैनल में भी नहीं भेजा। निखिल शर्मा सबसे मजबूत दावेदार था। लेकिन जानबूझकर संगठन कुछ पदाधिकारियों और एक दायित्वधारी ने निजी स्वार्थों के लिए निखिल शर्मा का टिकट नहीं होने दिया। लम्बे समय से DAV का चुनाव प्रबंधन देख रहे हम सभी छात्र नेताओं ने संगठन के सामने मजबूती से यह बात रखी कि निखिल शर्मा सबसे मजबूत दावेदार है। उसकी चुनावी तैयारी दूसरे दावेदार के मुकाबले काफी मजबूत है। उसकी जीत निश्चित है। लेकिन हमारी बातों को अनसुना कर दिया गया। हमें बागी बताते हुए निष्काषित कर दिया गया। हम अन्याय को सहन कर DAV में संगठन को हारते हुए नहीं देख सकते थे। इसलिए हमनें निखिल शर्मा को चुनाव लड़वाया और इस बात को सही साबित कर दिखाया कि निखिल शर्मा DAV चुनाव आसानी से जीत रहा था। निखिल को टिकट मिलता तो जीत का मार्जन दुगना होता। हमें ABVP संगठन से कोई नाराज़गी नहीं है। नाराज़गी है तो संगठन को खुद की बपौती समझने वाले पदाधिकारियो और उस दायित्वधारी से जिनकी वजह से 12 साल बाद ABVP छात्र संगठन पर सवाल खड़े हो रहें हैं। इस हार की ज़िमेदारी इन्हीं लोगों की है।
भाजपा संगठन की रणनीति हुई फेल
भाजपा संघठन को लगता है DAV में हार के संकेत मिललग गए थे,लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन युवा मोर्चा के नेताओं की गलती को सुधारने का समय भाजपा संघठन के पास नही था जिसके चलते टिकट का गलत चयन हो गया था,इस लिए संघठन ने भाजपा के देहरादून शहर के विधायकों के साथ भाजपा मेयर और पार्षदो को किसी भी हाल में ABVP को जिताने के लिए हर हथकंडे को अपनाने का प्रयास करने के लिए कहा लेकिन जो विधायक मेयर और पार्षद शहर में आसानी से जीत गए वह सब मिलकर भी ABVP को डीएवी में जीत नही दिला सके,जिससे कहा जा सकता है,कि अगर ABVP में DAV में जबरदस्ती का प्रत्याशी न थोपती तो 13 बार भी अध्य्क्ष पद पर ABVP अपना परचम लहराती.
बहरहाल ये हार एक सीख पूरे संगठन के लिए भी है जब देश की राष्ट्रीय राजनीति में भी चेहरे पर वोट पड़ रहे हो तो फिर छात्र संगठन चुनाव में आप उस चेहरे को नकार नहीं सकते जो ग्राउंड पर तैयारी कर रहा हो और उसकी जगह किसी और टिकट दिया जाय।