डेस्क- जी हां, हो सकता है ये सवाल सूबे के परिवहन निगम को नागवार गुजरे। हो सकता है ये सवाल जीरो टॉलरेंस की बात को असहज कर दे। लेकिन जब ये सवाल सोशल मीडिया जैसे जनमंच पर इंसाफ की गुहार लगाए तो संजीदा सवाल को हुक्मरानों तक पहुंचाना लाज़मी हो जाता है।
khabaruttarakhand.com के एक नियमित पाठक अजीत रावत ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का दावा करने वाली सरकार के दौर में एक बेहद मार्मिक अपील की है। अजीत ने लिखा कि, इस पोस्ट को जितना हो सकता है ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और भ्रष्टाचार के विरूद्ध की इस लड़ाई मे साथ दें।
अजीत ने अपने फेसबुक मित्र महिपाल नेगी के उस अनुभव को शेयर किया है जो उन्होंने उत्तराखंड परिवहन निगम की बस के सफर के दौरान भोगा है। अजीत ने परिवहन निगम की अनुबंधित भोजनालयों का कच्चा चिट्ठा खोला है कि, कैसे इन खाने के ठिकानों पर भूखे मुसाफिरों की जेब पर डाका डाला जाता है और सिंडकेट डकेती को अंजाम दिया जाता है।
जिसमें होटल मालिक सरकारी अनुबंध की आड़ में घटिया खाने के जबरन मनमाने दाम वसूलता है। होटल वाले दुगने तिगुने दामों को टैक्स बताते हैं । जबकि चालक-परिचालक ऐसे लूट के अड्डो मे रुकना परिवहन डिपो का आदेश बताता है।
गजब तो ये है कि, वैट जैसा टैक्स केद्र सरकार खत्म कर चुकी है जबकि सर्विस टैक्स भी सेवा से संतुष्ट होने पर दिए जाने का कायदा है।
ऐसे में अच्छे दिनों के दावे के बीच ,ये सवाल उठना लाजमी है कि आखिर उत्तराखंड परिवहन निगम की आड़ मे कैंटीनों की ये गुंडई कब तक जारी रहेगी और किस की शह पर । आखिर जीरो टॉलरेंस मुसाफिरों को लूटने वाले सरकारी लाइसेंस धारक भोजनालयों पर लागू नहीं होगा!
आप भी पढ़िए महिपाल नेगी के अनुभव को जो उन्होने सोशल मीडिया में इस उम्मीद से शेयर किया है कि, भय न भ्रष्टाचार वाले राज में इंसाफ मिलेगा। परिवहन मंत्री जी शिकायत पर गौर फरमाएगा, मेहरबानी होगी।